कहते हैं अबली की सुंदरता की तुलना नहीं की जा सकती थी। वो इतनी सुंदर थी की कोटा के महाराव मुकुन्द सिंह उसे देखते ही अपना दिल हार बैठे थे। महाराव उस सुंदरी पर ऐसे मोहित हुए और उसके बाद प्रेम कथा बनी वो आज भी लोगों द्वारा सुनी सुनाई जाती है।
राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 12 पर कोटा-झालावाड़ मार्ग मे दरा के पास इस अमिट प्रेम कहानी के इतिहास को सजोए हुए अबली मीणी का महल खड़ा हुआ है। इतिहासकार जनरल सर कनिंघम ने भी अपनी किताब “रिपोर्ट ऑफ इंडियन आर्कियोलोजिकल सर्वे” में किया है। इस किताब के अनुसार कोटा के महाराव मुकुंदसिंह ने अपनी प्रेयसी अबली मीणी के लिए दरा के सुरम्य जंगल में इस महल का निर्माण करवाया था। मुकुंदसिंह कोटा के संस्थापक माधोसिंह के पुत्र थे।
कैसे हुए महाराव अबली पर मोहित
महाराव मुकुन्द सिंह अपने शासन के समय दरा के जंगलों मे शिकार खेलने आया करते थे। ऐसे ही एक बार शिकार के समय उनकी नजर जंगल मे एक सुंदर महिला पर पड़ी। वो महिला अपने सर पर दो घड़े लिए हुए थे और दो लड़ते हुए सांडो को उनके सींगों से पकड़ कर उनकी लड़ाई छुड़ा रही थी।
महाराव इस महिला की सुंदरता और बहदुरी देखकर आश्चर्यचकित रह गए। खैराबाद की रहने वाली इस बहादुर महिला का नाम अबली मीणा था। अबली पर मोहित राव मुकुंद उसे हर कीमत पर पाना चाहते थे और उन्होंने अबली के समक्ष प्रेम का प्रस्ताव रखा। अबली ने उनके प्रेम प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया लेकिन एक शर्त रखी की जिस जगह वे सबसे पहली बार मिले थे उस जगह पर अबली के लिए एक महल बनाया जाये। महल मे प्रतिदिन रात्रि मे एक दीपक को ऐसे स्थान पर जलाया जाये जहां से उसकी रोशनी अबली के गाँव खैराबाद तक दिखाई दे।
महाराव ने अबली की शर्त के अनुसार जंगल मे महल का निर्माण करवाया इस महल को अबली मीणी के महल के नाम से जाना जाता है।
अबली मीणा का महल
अबली मीणा का महल पहाड़ पर बना दो मंजिला महल है। जिसमें नीचे आमने-सामने दो चौबारे हैं। दोनों चौबारों के बीच में एक तिबारी है। महल में स्नान आदि के लिए एक चौकोर कुंड भी बनाया गया था। तथा शेष स्थान पर दास-दासियों के लिए मकान बनाए गए थे। महल की सुरक्षा के लिए ऊंची चारदीवारी बनाई गई थी। यह अबली मीणी का महल आज भी इधर से गुजरने वाले राहगीरों को बरबस ही अपनी ओर आकर्षित कर लेता है। कुछ समय पूर्व ही इस महल का जीर्णोद्धार कराया गया है।
मुकुंदरा
महाराव मुकुन्द के नाम से ही आज इस वन का नाम रखा गया है। महाराव मुकुंद ने स्वयं के नाम पर भी यहां मुकुंदरा नाम से गांव बसाया था, जिसे वर्तमान में हम दरा गांव के नाम से जानते हैं।
महाराव मुकुंद की 1657 में उज्जैन के पास धर्मद स्थान पर युद्ध में मृत्यु हो गई। इसके बाद कोटा में अंतिम संस्कार किया गया। वहीं अबली भी अन्य रानियों व खवासिनों के साथ सती हो गई। आज राव मुकुंद व अबली दोनों नहीं हैं, लेकिन उनके प्रेम की दास्तान को यह महल आज भी बयां करता है। महल में वो स्थान अभी भी मौजूद है, जहां प्रतिदिन रात को दीपक जलाया जाता था। इस महल में दीपक जलाने की परंपरा अबली के निधन के बाद भी कई वर्षों तक अनवरत रूप से जारी रही थी।
शादीशुदा थी अबली, पति को मिली थी जागीर
बहुत कम लोग इस बात को जानते हैं कि अबली शादीशुदा थी। एक रात को अबली के पति ने राव मुकुंद पर छुर्रे से जानलेवा हमला कर दिया था। जिसे सुरक्षाकर्मियों ने नाकाम कर दिया। राव मुकुंद ने अबली के पति को खुश करने के लिए उसे दरा घाटी की जागीर दे दी। साथ ही यह हक भी दिया कि जो भी इस मार्ग से गुजरे, उससे अबली का पति शुल्क वसूल करे। उस समय हाडौती-मालवा को जोड़ने के लिए यही एक मात्र मार्ग था।