रुखमाबाई राऊत(1864-1955) भारत की प्रथम महिला चिकित्सक थीं।
वह एक ऐतिहासिक कानूनी मामले के केंद्र में भी थीं, जिसके परिणामस्वरूप 'एज ऑफ कॉन्सेंट एक्ट, 1891' नामक कानून बना।
जब वह केवल ग्यारह वर्ष की थीं तबी उन्नीस वर्षीय दुल्हे दादाजी भिकाजी से उनका विवाह कर दिय गया था। वह हालांकि अपनी विधवा माता जयंतीबाई के घर में रहती रही, जिन्होंने तब सहायक सर्जन सखाराम अर्जुन से विवाह किया। जब दादाजी और उनके परिवार ने रूखमाबाई को अपने घर जाने के लिए कहा, तो उन्होंने इनकार कर दिया और उनके सौतेले-पिता ने उसके इस निर्णय का समर्थन किया। इसने 1884 से अदालत के मामलों की एक लंबी श्रृंखला चली, बाल विवाह और महिलाओं के अधिकारों पर एक बड़ी सार्वजनिक चर्चा हुई। रूखमाबाई ने इस दौरान अपनी पढ़ाई जारी रखी और एक हिंदू महिला के नाम पर एक अख़बार को पत्र लिखे। उसके इस मामले में कई लोगों का समर्थन प्राप्त हुआ और जब उस ने अपनी डाक्टरी की पढ़ाई की इच्छा व्यक्त की तो लंदन स्कूल ऑफ़ मेडिसन में भेजने और पढ़ाई के लिए एक फंड तैयार किया गया। उसने स्नातक की उपाधि प्राप्त की और भारत की पहली महिला डॉक्टरों में से एक (आनंदीबाई जोशी के बाद) बनकर 1895 में भारत लौटी, और सूरत में एक महिला अस्पताल में काम करने लगी।
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