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Monday, December 14, 2015

अयंगर स्कूल ऑफ योग के संस्थापक बीकेएस अयंगर के जन्मदिवस पर गूगल का डूडल


अयंगर स्कूल ऑफ योग के संस्थापक बीकेएस अयंगर  के जन्मदिवस पर गूगल डूडल अपने होमपेज पर योग करते हुए अयंगर का डूडल लगाया है। 

अयंगर का जन्म 14 दिसंगर, 1918 को कर्नाटक के बेल्लुर में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। बचपन में उनका नाम बेल्लुर कृष्णामचार सुंदरराजा अयंगर रखा गया था। वर्ष 1934 में जब वह 16 साल के थे, उन्होंने अपने शिक्षक टी. कृष्णामचार्य से बचपन की बीमारियों से निजात पाने के लिए योग सीखा। इसके दो साल बाद उन्हें योग के प्रचार के लिए पुणे भेज दिया गया, क्योंकि वह अंग्रेजी जानते थे।
धीरे-धीरे उन्होंने 'अयंगर योग' का विकास किया और अपने अभ्यास से योग सूत्र का अर्थ जाना, जो शरीर, दिमाग और भावनाओं को जोड़ता है। यह 'अष्टांग शैली' आज दुनियाभर में मान्य है और इसका अभ्यास दुनियाभर के योग प्रशिक्षक करते हैं।
वर्ष 1952 में उन्हें प्रसिद्ध वायलिन वादक यहूदी मेनुहिन से मिलने का मौका मिला, जिन्होंने अयंगर का परिचय पश्चिमी दुनिया से कराया और उन्हें यूरोप, अमेरिका तथा अन्य देशों में योग पर व्याख्यान देने और वहां इसके बारे में बताने का अवसर मुहैया कराया।
चीन के डाक विभाग ने उनके सम्मान में वर्ष 2011 में डाक टिकट जारी किया था, जबकि सैन फ्रांसिस्को ने 3 अक्टूबर, 2005 को बीकेएस अयंगर दिवस के रूप में मनाया। वर्ष 1975 में अपनी पत्नी की याद में पुणे में रमामणि अयंगर मेमोरियल योग इंस्टीट्यूट की शुरुआत की। 

अयंगर को 1991 में पद्मश्री, 2002 में पद्मभूषण और 2014 में पद्मविभूषण से नवाजा गया था। अयंगर को विश्व के अग्रणी योग गुरुओं में से एक माना जाता है और उन्होंने योग के दर्शन पर कई किताबें भी लिखी थीं, जिनमें 'लाइट ऑन योगा', 'लाइट ऑन प्राणायाम' और 'लाइट ऑन द योग सूत्राज ऑफ पतंजलि' शामिल हैं।


Thursday, November 26, 2015

भारत के "मिल्क मेन" वर्गीस कुरियन गूगल डूडल पर

आज वर्गीस कुरियन का 94 वाँ जन्मदिन है। उन्हे भारत का "मिल्क मेन" कहा जाता है। उनके जन्मदिवस के अवसर पर गूगल इंडिया के होमपेज पर गूगल ने वर्गीस कुरियन का डूडल लगाया है।  इस डूडल मे वर्गीस कुरियन भैंस का दुश दुह रहे हैं। जमीन पर रस्सी गिरि हुई है उससे GOOGLE बनाया हुआ है।

वारगीस कुरियन देश मे दुग्ध क्रान्ति लेकर आए। उन्हे भारत की श्वेत क्रांति का जनक सम्मान से नवाजा गया।




Monday, November 02, 2015

गूगल पर जॉर्ज बूल का डूडल - कौन हे जॉर्ज बूल


2 नवंबर को गूगल ने अपने होमपेज पर जॉर्ज बूल का डूडल बनाया है। आज जॉर्ज बूल का 200 वां जन्मदिवस है। जॉर्ज बूल एक अंग्रेजी गणितज्ञ, शिक्षक, दार्शनिक और तर्कशास्त्री थे।  उन्होंने अंतर समीकरणों और बीजीय तर्क के क्षेत्र में काम किया है। उन्हे सबसे अधिक "The Law of Thought" के लिए जाना जाता है। 
जॉर्ज बूल 19 वीं सदी के सबसे प्रभावशाली गणितज्ञों मे से एक रहे हैं। उन्होने तर्क की ऐसी प्रणाली तैयार की जिसका उद्देश्य जटिल विचारों को सरल समीकरणों मे संक्षिप्त करना था। 



Saturday, October 24, 2015

प्रसिद्ध कार्टूनिस्ट आर के लक्ष्मण के 94वें जन्मदिन पर गूगल का डूडल

प्रसिद्ध कार्टूनिस्ट आर के लक्ष्मण के 94वें जन्मदिन पर गूगल ने अपने होमपेज पर आर के लक्ष्मण का डूडले लगाकर श्रद्धांजलि दी है। इसमे उन्हे उनकी प्रसिद्ध रचना "the Common man" की रचना करते हुए दिखाया गया है।

 रसीपुरम कृष्णस्वामी अइय्यर लक्ष्मण का जन्म 24 अक्टूबर 1921 को मैसूर मे हुआ था। और गत वर्ष 26 जनवरी 2015 को उनका देहावसान हो गया था।

श्री लक्ष्मण को कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। जिनमे पद्म भूषण (1973) मे , रेमन मैगसेसे पुरस्कार (1984) मे और पद्म विभूषण (2005) को मिला।

सिम्बायोसिस अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय में आरके लक्ष्मण के नाम पर एक कुर्सी है।



Saturday, June 27, 2015

ऑस्कर शिंडलर - एक जर्मन व्यापारी जिसने द्वितीय विश्व युद्ध के समय 1200 यहूदियों को नर संहार से बचाया

यह एक ऐसे आदमी की सच्ची कहानी है जिसने की द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अन्य की तुलना मे हिटलर और नाजियों को मात दी और सबसे अधिक यहूदियों को बचाया।
यह ऑस्कर शिंडलर की कहानी है जिसने यहूदियों को नरसंहार से बचाने के लिए अपनी जान पर खेल गया।

फोटो (wiki)
ऑस्कर शिंडलर एक जर्मन व्यवसायी, जासूस और नाजी पार्टी का सदस्य था। लेकिन शिंडलर ने होलोकास्ट(नरसंहार) के दौरान 1200 यहूदियों की जान उन्हे अपनी फेक्टरियों मे रोजगार देकर बचाई।
शिंडलर का जन्म 28 अप्रेल 1908 मे हुआ था और उसने 1936 मे नाजी जर्मनी की इंटेलिजेन्स सर्विस जॉइन करने से पहले काफी व्यापार करने की कौशिश की। और 1939 मे उसने नाजी पार्टी जॉइन कर ली। वह जर्मन सरकार के लिए रेलवे और सैनिक हलचल की सूचनाएँ एकत्रित करता था। जिसने के कारण एक बार चेक सरकार ने उसे गिरफ्तार भी किया था बाद मे म्यूनिख समझोते के आधार पर छोड़ दिया था।

लेकिन उसके बाद भी (1939) शिंडलर ने सूचनाएँ एकत्रित करना जारी रखा। उस समय पोलेंड ने आक्रमण नहीं किया था। और विश्व युद्ध का आरंभ ही हुआ था।

1939 मे शिंडलर ने पोलेंड के क्राकोव मे एनेमलवेयर नामक फेक्टरी डाली जिसमे 1750 कर्मचारी कार्यरत थे। उनमे से हजार के लगभग यहूदी थे, जब की 1944 मे फेक्टरी अपने चरम पर थी। शिंडलर के जासूसी कार्यों के समय हुए संबंधो के कारण शिंडलर अपने यहूदी कर्मचारियों को निर्वासन और हत्या से बचाए हुए था। उस समय नाजी यातना शिविरों मे यहूदियों की बर्बर हत्याए की जा रही थी।

प्रारम्भ मे शिंडलर की रुचि सिर्फ अधिक से अधिक धन कमाने मे थी। वह गाड़ियों मे भरकर धन कमाकर वापस ले जाना चाहता था। लेकिन बाद मे धीरे धीरे उसने अपने कर्मचारियों को बचना शुरू किया। जैसे जैसे समय बीतता गया शिंडलर ने नाजियों के बड़े अधिकारियों को रिश्वत खिलना शुरू किया। वह उन्हे महंगे तोहफे देता था, भारी रिश्वत देता था जिससे की उसके कर्मचारी सुरक्षित रह सकें।

जुलाई 1944, जब जर्मनी जंग हार रहा था तब उसने अपने यातना शिविरों को बंद करना शुरू कर दिया।  और यहूदी कैदियों को पश्चिम की और ले जाने लगा। उनमे से हजारों की संख्या मे यहूदियों को Auschwitz और Gross-Rosen यातना शिविरों मे मार दिया गया।  ऐसे समय मे शिंडलर ने एक बड़े अधिकारी अमोन गोथ को मनाना शुरू किया जो की क्राकोव यातना शिविर का कमांडेंट था। शिंडलर ने अमोन गोथ को मनाया जिससे की वो उसकी फेक्टरी को Sudetenland के Brünnlitz मे ले जा सके। सिर्फ यही एक रास्ता था जिससे की उसके कर्मचारी हत्यारे गेस चेम्बर से बच सकते थे।

शिंडलर ने एक लिस्ट बनाई जिसने 1200 यहूदी मजदूरों के नाम थे, जिनहे वो ब्रुनील्त्ज़ ले जा रहा था। इसके लिए उसे काफी सारा धन रिश्वत मे देना पड़ा। वो लगभग बरबादी की स्थिति मे आ गया। इतने साल जो उसने कमाया वो सब जा रहा था।

अक्तूबर 1944 मे शिंडलर अपने 1200 कंरचरियों को Brünnlitz ले गया। वहाँ टॉप का गोला बनाने के फेक्टरी डाली लेकिन उसने एक प्रोडक्ट नहीं बनाया। अपनी जमा पुंजी खर्च करता रहा। अधिकारियों को लगातार रिश्वत खिलाता रहा। 1945 तक, जब तक की यूरोप मे विश्व युद्ध समाप्त नहीं होगया उसने अपने आपको अधिकारियों को रिश्वत खिलाने मे और मजदूरों को पालने मे बर्बाद कर दिया, लेकिन अपने एक भी कर्मचारी को मरने नहीं दिया।

और आखिरकार उसने 1200 यहूदी बचा लिए, लेकिन युद्ध समाप्त होते ही उसे भी वहाँ से जाना पड़ा। युद्ध के बाद पश्चिम जर्मनी में चला गया, वहाँ उसकी मदद यहूदी सहायता संगठनो ने धन देकर की।  युद्ध के समय के खर्च के लिए एक आंशिक प्रतिपूर्ति प्राप्त करने के बाद वह अपनी पत्नी के साथ अर्जेन्टीना चला गया, जहां उसने खेतीबाड़ी की। 1958 मे वह दिवालिया हो गया। वो वापस जर्मनी आया, उसने शिंडर यहूदियों की सहायत से कई तरह के व्यापार करने की कौशिश की लेकिन सफल नहीं हो पाया। शिंडर यहूदी वे यहूदी थे जिनहे उनसे विश्व युद्ध मे बचाया था।

इज़राइल की सरकार ने 1963 मे शिंडलर को Righteous Among the Nations का नाम दिया। 9 अक्तूबर 1974 मे शिंडलर की जर्मनी मे मृत्यु हो गयी और उसे येरूशलम के माउंट जिओन मे दफनाया गया।  वो नाजी पार्टी का एकमात्र ऐसा सदस्य था जिसका इस तरह सम्मान हुआ था।