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Monday, May 16, 2016

मोदी विरोधियों के दो वर्ष पुराने बयान - जब मोदी प्रधानमंत्री नहीं बने थे

दो वर्ष पहले आज के दिन केंद्र मे नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व मे सरकार बनी थी। लेकिन मोदी विरोधियों को विश्वास नहीं था की केंद्र मे मोदी सरकार बन सकती है। इसी अहंकार मे मोदी विरोधी सरकार बनने से पहले मोदी के विरोध मे जबर्दस्त बयानबाजी करते थे, ट्वीटियाते थे।
ऐसे ही कुछ अद्भुत ट्वीट याददाश्त ताजा करने के लिए प्रस्तुत हैं : -


Monday, October 19, 2015

सोनिया गांधी की स्तुति मे कविता लिखने वाले मुनव्वर राणा ने भी साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाया

जी हाँ ! मुनव्वर राणा मशहूर शायर होने के साथ साथ सोनिया गांधी के चापलूस भी थे। इतनी चापलूसी, की अकादमी पुरस्कार से नवाजे हुए शायर ने सोनिया की काव्य स्तुति कर डाली।
सिर्फ मुनावर राणा ही नहीं बल्कि मे जितने भी लेखकों से साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाया है वे सब के सब बीजेपी के धुर विरोधी रहे हैं। ऐसे मे प्रधानमंत्री मोदी को बदनाम करने लिए सम्मान लौटाना कोई आश्चर्य नहीं है। यदि कोई तटस्थ लेखक सम्मान लौटाए तो फिर भी सोचने योग्य बात होती है।
लेकिन ये सब के सब लेखक बीजेपी के धुर विरोधी रहे हैं। पुरस्कार लौटाने की शुरुआत नयनतारा सहगल ने की।
और नयन तारा सहगल कौन है? 
नयनतारा सहगल जवाहर लाल नेहरू की बहन विजयलक्ष्मी पंडित की पुत्री है। क्या इनका मोदी के खिलाफ पुरस्कार लौटाना कोई आश्चर्य है? बिलकुल नहीं, ये सब के सब षड्यंत्र के तहत अपने सम्मान लौटा रहे हैं ताकि प्रधानमंत्री मोदी की छवि को नुकसान पहुंचाया जा सके। 
कोई नेहरू गांधी परिवार का रक्त है तो कोई संबंधी है तो कोई चापलूस है तो कोई बीजेपी विरोधी है। ऐसे ऐब रखने वाले लेखों का पुरस्कार लौटाना जरा भी आश्चर्य की बात नहीं। 
अब मुनव्वर राणा की ये कविता ही लो जो उन्होने सोनिया गांधी की स्तुति मे लिखी 
रुख़सती होते ही मां-बाप का घर भूल गयी।
भाई के चेहरों को बहनों की नज़र भूल गयी।
घर को जाती हुई हर राहगुज़र भूल गयी,
मैं वो चिडि़या हूं कि जो अपना शज़र भूल गयी।
मैं तो भारत में मोहब्बत के लिए आयी थी,
कौन कहता है हुकूमत के लिए आयी थी।
नफ़रतों ने मेरे चेहरे का उजाला छीना,
जो मेरे पास था वो चाहने वाला छीना।
सर से बच्चों के मेरे बाप का साया छीना,
मुझसे गिरजा भी लिया, मुझसे शिवाला छीना।
अब ये तक़दीर तो बदली भी नहीं जा सकती,
मैं वो बेवा हूं जो इटली भी नहीं जा सकती।
आग नफ़रत की भला मुझको जलाने से रही,
छोड़कर सबको मुसीबत में तो जाने से रही,
ये सियासत मुझे इस घर से भगाने से रही।
उठके इस मिट्टी से, ये मिट्टी भी तो जाने से रही।
सब मेरे बाग के बुलबुल की तरह लगते हैं,
सारे बच्चे मुझे राहुल की तरह लगते हैं।
अपने घर में ये बहुत देर कहाँ रहती है,
घर वही होता है औरत जहाँ रहती है।
कब किसी घर में सियासत की दुकाँ रहती है,
मेरे दरवाज़े पर लिख दो यहाँ मां रहती है।
हीरे-मोती के मकानों में नहीं जाती है,
मां कभी छोड़कर बच्चों को कहाँ जाती है?
हर दुःखी दिल से मुहब्बत है बहू का जिम्मा,
हर बड़े-बूढ़े से मोहब्बत है बहू का जिम्मा
अपने मंदिर में इबादत है बहू का जिम्मा।
मैं जिस देश आयी थी वही याद रहा,
हो के बेवा भी मुझे अपना पति याद रहा।
मेरे चेहरे की शराफ़त में यहाँ की मिट्टी,
मेरे आंखों की लज़ाजत में यहाँ की मिट्टी।
टूटी-फूटी सी इक औरत में यहाँ की मिट्टी।
कोख में रखके ये मिट्टी इसे धनवान किया,
मैंन प्रियंका और राहुल को भी इंसान किया।
सिख हैं,हिन्दू हैं मुलसमान हैं, ईसाई भी हैं,
ये पड़ोसी भी हमारे हैं, यही भाई भी हैं।
यही पछुवा की हवा भी है, यही पुरवाई भी है,
यहाँ का पानी भी है, पानी पर जमीं काई भी है।
भाई-बहनों से किसी को कभी डर लगता है,
सच बताओ कभी अपनों से भी डर लगता है।
हर इक बहन मुझे अपनी बहन समझती है,
हर इक फूल को तितली चमन समझती है।
हमारे दुःख को ये ख़ाके-वतन समझती है।
मैं आबरु हूँ तुम्हारी, तुम ऐतबार करो,
मुझे बहू नहीं बेटी समझ के प्यार करो।

अब ऐसे शायर जो की सोनिया गांधी का महिमामंडन करते रहे हों वे क्या मोदी का विरोध नहीं करेंगेें? एक दिन पहले ही बांग्लादेशी मशहूर लेखिका तसलीमा नसरीन ने इन लेखकों के पुरस्कार लौटाने पर प्रतिकृया देते हुए कहा था की ये सब लेखक ज़्यादातर दोहरे मापदंड रखते हैं। लेखिका ने अपना समय याद करते हुए कहा की जब उनके उपर प्रतिबंध लगाया जा रहा था तब ये सारे लेखक चुप बैठे थे तब किसी ने भी पुरस्कार लौटाने की जहमत नहीं उठाई।

आज ये सारे लेखक मिलकर प्रधानमंत्री को बदनाम करने की कागजी साजिश कर रहे हैं लेकिन इन्हे याद नहीं है की भारत की जनता बेवकूफ नहीं है हम सब जान गए हैं की इन लोगों से बीजेपी की सरकार पचायी नहीं जा पा रही है। और यही कारण है की इन्हे बार बार उल्टी आ रही है।  ये लोग मोदी जी को बदनाम करने की जितनी साजिश करेंगे मोदी जी उतने ही प्रबल होकर उभरेंगे।

Thursday, February 17, 2011

भारत का पहला प्रधानमंत्री

ये मेरे भारत के पहले प्रधानमंत्री हैं जो की मजबूर हैं और उनके मुताबिक थोड़े से दोषी हैं.

इतने मजबूर हैं की कुछ कर नहीं सकते.  मीडिया के सामने बोलने भी मजबूरी में आना पड़ा.

उनके मीटर के हिसाब से अभी वे इतने दोषी नहीं हैं की इस्तीफ़ा दिया जाये. अभी तो इस देश का जरा सा  नुक्सान  हुआ है, इतने से में इस्तीफ़ा देना नहीं बनता भाई.

उनके मुताबिक उनकी सबसे बड़ी  मजबूरी गठबंधन है,  प्रधानमंत्री जी मानते हैं की देश को सही प्रकार चलाने से ज्यादा महत्वपूर्ण गठबंधन चलाना है


अरे भाई प्रधानमंत्री जी अगर आप इतना ही मजबूर हो तो इस्तीफ़ा क्यूँ नहीं दे देते.


किसी ऐसे व्यक्ति को वहां बैठने दीजिये जो मजबूर नहीं हो.

मुझे शर्म आती है आपको प्रधानमंत्री कहते हुए ,  यदि आप मजबूर हैं और कुछ नहीं कर सकते तो फिर क्यूँ कुर्सी पर काबिज़ हो, वहां बेठ कर क्या करोगे. जब कुछ करना ही नहीं है तो फिर क्यूँ न घर में बेठा जाये. हिन्दुस्तान में बहुत है जो की मजबूर नहीं होंगे.

मेरा आपसे नम्र निवेदन है की कृपा करके आप इस्तीफ़ा दे देवे. आपने अपनी मजबूरी दर्शा कर अपनी छवि स्वय खराब कर ली है. बाहर के मुल्कों में हमारी बदनामी हो रही है की भारत में मजबूर और थोडा सा दोषी प्रधानमंत्री बैठा है.

आप कुछ शर्म और लिहाज करें और इस्तीफ़ा दे देवे.

इस देश के नागरिक शर्म महसूस कर रहें है जबसे आपने कहा है की आप मजबूर है.

मेरा आपसे निवेदन है की कृपा करके आप ये पद छोड़ देवे और किसी ऐसे व्यक्ति को उस पद पर आने देवे जो की मजबूर नहीं हो.

आप खुद ही सोचिये की जिस देश का प्रधनमंत्री ही मजबूर होगा उस देश के नागरिक कितने मजबूर होंगे. सोचिये की आप आम नागरिक होते और कोई प्रधानमंत्री ऐसे कहता तो आप उसके बारे में क्या सोचते.

आप अपनी मजबूरीयों का खुलासा क्यूँ नहीं करते  ?

क्या देश को लूटने  वालों को बचाना आपकी मजबूरी है  ?

मजबूरी का नाम महात्मा गांधी नहीं मनमोहन सिंह हो गया है  ?

अगर आप इमानदार होते तो मजबूर नहीं होते. क्यूंकि एक इमानदार नेता ऐसे समय में इस्तीफ़ा दे देता है..