ये मेरे भारत के पहले प्रधानमंत्री हैं जो की मजबूर हैं और उनके मुताबिक थोड़े से दोषी हैं.
इतने मजबूर हैं की कुछ कर नहीं सकते. मीडिया के सामने बोलने भी मजबूरी में आना पड़ा.
उनके मीटर के हिसाब से अभी वे इतने दोषी नहीं हैं की इस्तीफ़ा दिया जाये. अभी तो इस देश का जरा सा नुक्सान हुआ है, इतने से में इस्तीफ़ा देना नहीं बनता भाई.
उनके मुताबिक उनकी सबसे बड़ी मजबूरी गठबंधन है, प्रधानमंत्री जी मानते हैं की देश को सही प्रकार चलाने से ज्यादा महत्वपूर्ण गठबंधन चलाना है
अरे भाई प्रधानमंत्री जी अगर आप इतना ही मजबूर हो तो इस्तीफ़ा क्यूँ नहीं दे देते.
किसी ऐसे व्यक्ति को वहां बैठने दीजिये जो मजबूर नहीं हो.
मुझे शर्म आती है आपको प्रधानमंत्री कहते हुए , यदि आप मजबूर हैं और कुछ नहीं कर सकते तो फिर क्यूँ कुर्सी पर काबिज़ हो, वहां बेठ कर क्या करोगे. जब कुछ करना ही नहीं है तो फिर क्यूँ न घर में बेठा जाये. हिन्दुस्तान में बहुत है जो की मजबूर नहीं होंगे.
मेरा आपसे नम्र निवेदन है की कृपा करके आप इस्तीफ़ा दे देवे. आपने अपनी मजबूरी दर्शा कर अपनी छवि स्वय खराब कर ली है. बाहर के मुल्कों में हमारी बदनामी हो रही है की भारत में मजबूर और थोडा सा दोषी प्रधानमंत्री बैठा है.
आप कुछ शर्म और लिहाज करें और इस्तीफ़ा दे देवे.
इस देश के नागरिक शर्म महसूस कर रहें है जबसे आपने कहा है की आप मजबूर है.
मेरा आपसे निवेदन है की कृपा करके आप ये पद छोड़ देवे और किसी ऐसे व्यक्ति को उस पद पर आने देवे जो की मजबूर नहीं हो.
आप खुद ही सोचिये की जिस देश का प्रधनमंत्री ही मजबूर होगा उस देश के नागरिक कितने मजबूर होंगे. सोचिये की आप आम नागरिक होते और कोई प्रधानमंत्री ऐसे कहता तो आप उसके बारे में क्या सोचते.
आप अपनी मजबूरीयों का खुलासा क्यूँ नहीं करते ?
क्या देश को लूटने वालों को बचाना आपकी मजबूरी है ?
मजबूरी का नाम महात्मा गांधी नहीं मनमोहन सिंह हो गया है ?
अगर आप इमानदार होते तो मजबूर नहीं होते. क्यूंकि एक इमानदार नेता ऐसे समय में इस्तीफ़ा दे देता है..