Monday, October 19, 2015

सोनिया गांधी की स्तुति मे कविता लिखने वाले मुनव्वर राणा ने भी साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाया

जी हाँ ! मुनव्वर राणा मशहूर शायर होने के साथ साथ सोनिया गांधी के चापलूस भी थे। इतनी चापलूसी, की अकादमी पुरस्कार से नवाजे हुए शायर ने सोनिया की काव्य स्तुति कर डाली।
सिर्फ मुनावर राणा ही नहीं बल्कि मे जितने भी लेखकों से साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाया है वे सब के सब बीजेपी के धुर विरोधी रहे हैं। ऐसे मे प्रधानमंत्री मोदी को बदनाम करने लिए सम्मान लौटाना कोई आश्चर्य नहीं है। यदि कोई तटस्थ लेखक सम्मान लौटाए तो फिर भी सोचने योग्य बात होती है।
लेकिन ये सब के सब लेखक बीजेपी के धुर विरोधी रहे हैं। पुरस्कार लौटाने की शुरुआत नयनतारा सहगल ने की।
और नयन तारा सहगल कौन है? 
नयनतारा सहगल जवाहर लाल नेहरू की बहन विजयलक्ष्मी पंडित की पुत्री है। क्या इनका मोदी के खिलाफ पुरस्कार लौटाना कोई आश्चर्य है? बिलकुल नहीं, ये सब के सब षड्यंत्र के तहत अपने सम्मान लौटा रहे हैं ताकि प्रधानमंत्री मोदी की छवि को नुकसान पहुंचाया जा सके। 
कोई नेहरू गांधी परिवार का रक्त है तो कोई संबंधी है तो कोई चापलूस है तो कोई बीजेपी विरोधी है। ऐसे ऐब रखने वाले लेखों का पुरस्कार लौटाना जरा भी आश्चर्य की बात नहीं। 
अब मुनव्वर राणा की ये कविता ही लो जो उन्होने सोनिया गांधी की स्तुति मे लिखी 
रुख़सती होते ही मां-बाप का घर भूल गयी।
भाई के चेहरों को बहनों की नज़र भूल गयी।
घर को जाती हुई हर राहगुज़र भूल गयी,
मैं वो चिडि़या हूं कि जो अपना शज़र भूल गयी।
मैं तो भारत में मोहब्बत के लिए आयी थी,
कौन कहता है हुकूमत के लिए आयी थी।
नफ़रतों ने मेरे चेहरे का उजाला छीना,
जो मेरे पास था वो चाहने वाला छीना।
सर से बच्चों के मेरे बाप का साया छीना,
मुझसे गिरजा भी लिया, मुझसे शिवाला छीना।
अब ये तक़दीर तो बदली भी नहीं जा सकती,
मैं वो बेवा हूं जो इटली भी नहीं जा सकती।
आग नफ़रत की भला मुझको जलाने से रही,
छोड़कर सबको मुसीबत में तो जाने से रही,
ये सियासत मुझे इस घर से भगाने से रही।
उठके इस मिट्टी से, ये मिट्टी भी तो जाने से रही।
सब मेरे बाग के बुलबुल की तरह लगते हैं,
सारे बच्चे मुझे राहुल की तरह लगते हैं।
अपने घर में ये बहुत देर कहाँ रहती है,
घर वही होता है औरत जहाँ रहती है।
कब किसी घर में सियासत की दुकाँ रहती है,
मेरे दरवाज़े पर लिख दो यहाँ मां रहती है।
हीरे-मोती के मकानों में नहीं जाती है,
मां कभी छोड़कर बच्चों को कहाँ जाती है?
हर दुःखी दिल से मुहब्बत है बहू का जिम्मा,
हर बड़े-बूढ़े से मोहब्बत है बहू का जिम्मा
अपने मंदिर में इबादत है बहू का जिम्मा।
मैं जिस देश आयी थी वही याद रहा,
हो के बेवा भी मुझे अपना पति याद रहा।
मेरे चेहरे की शराफ़त में यहाँ की मिट्टी,
मेरे आंखों की लज़ाजत में यहाँ की मिट्टी।
टूटी-फूटी सी इक औरत में यहाँ की मिट्टी।
कोख में रखके ये मिट्टी इसे धनवान किया,
मैंन प्रियंका और राहुल को भी इंसान किया।
सिख हैं,हिन्दू हैं मुलसमान हैं, ईसाई भी हैं,
ये पड़ोसी भी हमारे हैं, यही भाई भी हैं।
यही पछुवा की हवा भी है, यही पुरवाई भी है,
यहाँ का पानी भी है, पानी पर जमीं काई भी है।
भाई-बहनों से किसी को कभी डर लगता है,
सच बताओ कभी अपनों से भी डर लगता है।
हर इक बहन मुझे अपनी बहन समझती है,
हर इक फूल को तितली चमन समझती है।
हमारे दुःख को ये ख़ाके-वतन समझती है।
मैं आबरु हूँ तुम्हारी, तुम ऐतबार करो,
मुझे बहू नहीं बेटी समझ के प्यार करो।

अब ऐसे शायर जो की सोनिया गांधी का महिमामंडन करते रहे हों वे क्या मोदी का विरोध नहीं करेंगेें? एक दिन पहले ही बांग्लादेशी मशहूर लेखिका तसलीमा नसरीन ने इन लेखकों के पुरस्कार लौटाने पर प्रतिकृया देते हुए कहा था की ये सब लेखक ज़्यादातर दोहरे मापदंड रखते हैं। लेखिका ने अपना समय याद करते हुए कहा की जब उनके उपर प्रतिबंध लगाया जा रहा था तब ये सारे लेखक चुप बैठे थे तब किसी ने भी पुरस्कार लौटाने की जहमत नहीं उठाई।

आज ये सारे लेखक मिलकर प्रधानमंत्री को बदनाम करने की कागजी साजिश कर रहे हैं लेकिन इन्हे याद नहीं है की भारत की जनता बेवकूफ नहीं है हम सब जान गए हैं की इन लोगों से बीजेपी की सरकार पचायी नहीं जा पा रही है। और यही कारण है की इन्हे बार बार उल्टी आ रही है।  ये लोग मोदी जी को बदनाम करने की जितनी साजिश करेंगे मोदी जी उतने ही प्रबल होकर उभरेंगे।

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