Friday, March 17, 2006

श्मशान के सेवक

श्मशान के सेवक (गन्दी राजनीति के शिकार)
हमारे देश में राजनीतिज्ञों को बस मोके का इन्तजार रहता है कि कब मौका आए ओर कब राजनीति की रोटियां सेकी जाय। और इन नेता कहलाने का शोक रखने वालों की नेतागिरी का शिकार होते हैं कुछ मासूम लोग। इनकी नेतागिरी का आलम ये है कि कैसे भी करके अखबार में एक फोटो आजाए, चाहे इसके लिये इन्हे अंगूठे के दम पर खडा होना पडे।
राजस्थान के कोटा शहर की बात बता रहा हूं, यहां पर एक सज्जन व्यक्ति हैं श्री हरी कृष्ण बिरला जो कहने को तो यहां के विधायक के बडे भाई हैं परंतु उनकी सादगी एवं सज्जनता ही उनकी सबसे बडी पहचान है। चुंकि विधायक के बडे भाई होने के नाते राजनीति में उनकी रूचि है।
अब मैं आपको वह बात बताने जा रहा हूं जिसे पढकर आश्चर्य होगा, श्री हरी कृष्ण बिरला गत 16 माह से श्मशान में जाकर वहां साफ-सफाई करते हैं तथा उनके साथ 5-6 नौजवान भी उनका साथ दे रहे हैं, यह श्मशान कोटा के नदी तट पर स्थित है तथा अंतिम क्रिया के समस्त संस्कार यहां सम्पन्न किये जाते हैं, अर्थात यह कोटा का एसा श्मशान घाट है जो चंबल नदी के तट पर स्थित है और शहर के मध्य में पडता है। यहां आकर हृदय को सुकून मिलता है। 16 महिनो कि कठोर मेहनत जिसमें श्री बिरला सुर्योदय से पहले अपने समूह के साथ यहां पहूंचते हैं, और नित्य प्रतिदिन यहां
साफ सफाई, झाडू लगाते हैं। उनकी 16 माह की मेहनत ने यहां का नक्शा ही पलट कर रख दिया, इनकी मेहनत व लगन तथा निस्वार्थ सेवा भाव को देखते हूए नगर विकास न्यास ने श्मशान की देखरेख के लिये श्री बिरला की समिति को जिम्मेदारी सोंपी, तथा न्यास की ओर से टेन्डर हूए तथा यहां के नवीनीकरण में सरकार का भी ध्यान गया। इसका परिणाम यह हूआ कि श्मशान घाट की दशा सुधर गई तथा यह एक सुन्दर स्थल के रूप में उभर कर सामने आया।
बस यहीं से कहानी आरम्भ हुई, शहर के लोगों ने स्थान की तारीफ करना शुरू किया, जो भी यहां आता तारीफ किये बिना नहीं रह पाता। अब तुर्रा यह है कि शहर में तीन विधायक निवास करते हैं, राजनीति शुरू हो गई, नेता कहने लगे कि न्यास द्वारा एक ही श्मशान पर ध्यान क्यों दिया जा रहा हैं, हमारे क्षेत्र के श्मशान ऐसे ही बनाए जाए, श्मशान को पांच सितारा बना दिया गया है, चुंकि विधायक का भाई संभाल रहा है इसलिये इसी पर अधिक ध्यान दिया जा रहा है, सफाई के पैसे मिलते हैं, फलाना और ढिमका। अर्थात सिर्फ और सिर्फ नेतागिरी करने के लिये, अखबार में चित्र छपाने के लिये, तथा श्री बिरला को माध्यम बनाकर उनके विधायक भाई कि छवि धुमिल करने के प्रयास किये गये। अखबार में अन्ट शन्ट बयानबाजी की गई। किसी की कढी हनत की धज्जीयां उडा दि गई।
किसी को यह नहीं सूझा कि इस नेतागिरी से वह आदमी कितना आहत हुआ होगा जो 16 महिने से लगातार यहां मेहनत कर रहा है। उसका इसमें क्या स्वार्थ था। क्या कभी उसने अपने इस कार्य का प्रचार किया। यदि नहीं किया तो क्या मकसद सिर्फ सेवा भाव था। यदि सेवा भाव था तो वह सज्जन कितना व्यथित हुआ होगा।
श्री बिरला का इन लोगों को जवाब है कि उन्हे कार्य करने से कोई नहीं रोक सकता, क्योंकि उनके पास दो हाथ हैं, यदि न्यास यहां काम करवाए तो ठीक अन्यथा वे यहां कार्य कराने के लिये शहर में भीख भी मांगने में संकोच नहीं करेंगे। उसका परिणाम यह होगा कि फिर न्यास कभी यह नहीं कह पाएगा कि वह भी जिम्मेदार है इस सुंदरता का।

1 comment:

  1. अच्‍छा लगा ये जानकर अब भी इतने सज्‍जन व्‍यक्‍ति हैं

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