Friday, February 26, 2016

कोई सुणतो जावै, तो दीजे ओलमों

शादी के बाद बेटी पिता का घर छोडकर पति के घर को अपनाती है, लेकिन उसे वो अपनापन नहीं मिलता जो मायके मे मिलता था। ऐसे मे जब वह पुराने दिन याद करती है, तो घर, बार, पास-पड़ोस, सहेलियाँ याद आती है। 
हाड़ोती भाषा के कवि "मुकुट मणिराज" ने उस कसक को यूं शब्द दिये हैं।





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