मैं क्षमा चाहता हूँ उनसे जो जरा आधुनिक हैं जिन्हें होली का त्यौहार नहीं सुहाता कि इस त्यौहार मैं भौंडापन है। मैं क्षमा चाहता हूँ उनसे जिन्हे वेलेन्टाईन डे नहीं मनाने दिया जाता। मैं क्षमा चाहता हूँ उनसे जिन्हे मैं गुस्से में तु तडाक कर जाता हूँ। मैं क्षमा चाहता हूँ उनसे जो धर्म का पक्ष लेने पर मुझे हिन्दुवादी कहते है। मैं क्षमा चाहता हूँ उनसे जो अपने धर्म की बुराई करके इठलाते हैं। मैं क्षमा चाहता हूँ उनसे जो आधुनिक विचार धारा के कहलाते हैं। मैं क्षमा चाहता हूँ उनसे जो दिखावे में जिंदगी बिताते है। मैं क्षमा चाहता हूँ उनसे जो यह जताते हैं कि वे धर्मनिरपेक्ष हैं।
मैं क्षमा चाहता हूँ उनसे जिनके लिये धर्म एक बकवास है।
मैं क्षमा चाहता हूँ उनसे जिन्हे मनुष्य बनने कि आस है।।
जो मुझे मानवता पर गन्दा धब्बा बताते हैं।
अपने जिस्म के दाग शान से बताते हैं।।
हां मेरी बुद्धि अल्प है और संकीर्ण मानसिकता है।
लेकिन फिर भी धार्मिक होना अच्छा लगता है।।
जो रामायण, महाभारत, गीता, विष्णु पुराण और शिव पुराण भी पढते हैं।
जो मंदिर, मस्जिद, गुरूद्वारे और गिरजाघर की सिढीयां भी चडते हैं।।
और बाद में इन ग्रंथों को बुरा बताते हैं।
मंदिर, मस्जिद, गुरूद्वारे और गिरजाघर जाने को पर्यटन बताते है।
जो पाखडिंयो के कृत्य से पुरे धर्म को गाली बकते है।
एसे ही लोगो को आधुनिक जगत में महान कहते है।
गोतम हिंदु थे जब बोधिसत्व प्राप्त हुआ था।
तब एक नये धर्म का आगाज हुआ था।।
बोद्ध धर्म को उन्होने एक उंचाई दी।
कोई बता दे कि उन्होने हिन्दु धर्म की बुराई की।।
प्रत्येक धर्म महान है क्योकि वह मानवता, मनुष्य का कल्याण सिखाता है।
परंतु इससे भी महान वे लोग हैं जिन्हे हर धर्म एक बकवास नजर आता है।।
मैं क्षमा चाहता हूँ उनसे मैं क्षमा चाहता हूँ उनसे।।।
हमें तो मालूम ही नहीं था कि कक्षा में हाज़िरी भी लगानी पड़ती है। पर गुरू जी हम कक्षा में अनुपस्थित नहीं थे। चाहें तो पाठशाला के बाहर के गुपचुप बेचने वाले से पूछ लें।
ReplyDeletesorry that was a wrong post.......
ReplyDeleteयुगल भाईबहुत गहरी बात कही है एवं समाज के एक वर्ग पर बडा सटीक कटाक्ष है. आपकी लेखनी की हिम्मत की दाद एवं आपको बधाई.समीर लाल
ReplyDeleteअच्छा लिखा है युगल. बधाई. यह सही तरीका है अपनी बात सक्षम रूप से रखने का.
ReplyDeleteयुगल भाई, आपने अपनी सभी बातें युक्तियुक्त और चुटीले ढंग से रखी हैं और इसलिये आप बधाई के पात्र हैं। लेकिन इससे पहले आपने कुछ न सधी हुई भाषा का इस्तेमाल करके अपने पक्ष को कुछ कमज़ोर ज़रूर कर लिया है। उम्मीद है कि भविष्य में भी आप इसी तरह सम्यक् रूप से अपने पक्ष को मज़बूती और सधी हुई भाषा के साथ रखेंगे।
ReplyDeleteआपने दुबारा इसी विषय पर लिखा हैं, पढ कर अच्छा लगा कि आपको हिन्दु धर्म की चिंता हैं, और यहाँ मैं इसी लिए लिख रहा हुं. मेरा अनुरोध हैं आप मेरी पोस्ट जो अनुगूंज के तहत आज लिखी हैं जरूर पढे और अपने विचारों से अवगत करायें. आपने यहां बुद्ध का जिक्र किया हैं क्या आप बता सकते हैं उस समय बुद्ध तथा महावीर कि जरूरत क्यों पङी थी? क्योंकि हमारे धर्म में जो बुराईयां आ गयी थी उससे वे व्यथीत थे. दोनो का धर्म आंदोलन एक विद्रोह ही तो था. जात-पात के भेदभाव, गुलाम प्रथा, नरबली-पशुबली जैसे कई कार्य धर्म का हिस्सा थे. फिर जिन हिन्दुओं को उनकी बातो को अपनाया वे जैन या बौध कहलाये. जैनियों तथा बौधो में जात-पात कि ऊंच-नीच नहीं होती पर हिन्दुओं में आज भी हैं, क्या यह सही हैं? हमें इसका विरोध नही करना चाहिए? अन्यथा धर्मपरिवर्तन होते रहेंगे और हिन्दु नाम शेष हो जायेंगे. कभी ध्यान से सोचीये क्यों हम शताब्दियों तक गुलाम रहे? क्या वे कारण आज भी मौजुद नहीं हैं. अगर कोई इस ओर ध्यान दिला रहा हैं तो उसे आधुनिकता का ढोंग करने वाला कह देना आसान हैं, सुधार के लिए आगे आना कहीं अधिक मुश्किल. मित्र हमारा ध्येय एक ही हैं हिन्दु तथा भारत को शक्तिशाली बनते देखना पर यह कैसे हो इसी पर मतभेद हैं. मैं अपने आप को आधुनिक नहीं मानता क्योकि मैं कोई भी नई बात नहीं कह रहा हुं, यह सब हजारों सालो से समय-समय पर कोई न कोई कहता आया हैं और फिर पश्चिम वालों को भी मैं महान नहीं समझता.
ReplyDeleteआपके विचार मुझे बहुत पसंद आए।
ReplyDeleteसंजय भाई, जहाँ तक मैं जानता हूँ भारत में ग़ुलाम प्रथा और नरबलि की प्रथा कभी भी आम प्रचलन में नहीं थी। अगर ऐसा था तो कृपया तथ्य की पुष्टि करें।
ReplyDeleteक्या दीपक भाई सोरी बोलने की क्या आवश्यकता है, जब आ ही गये थे तो कुछ कमेंट्स कर जाते।धन्यवाद समीर लाल जीधन्यवाद पंकज जीधन्यवाद प्रतीक जीधन्यवाद संजय जी कि पढकर आपको अच्छा लगा।मैने बुद्ध का जिक्र इस संदर्भ में किया है कि बुद्ध तथा महावीर जी ने धर्म तो परिवर्तित कर लिया लेकिन एक बात आपको माननी पडेगी कि कभी इन्होने हिन्दु धर्म की बुराई नहीं की।जात-पात के भेदभाव, गुलाम प्रथा, नरबली-पशुबली जैसे कई कार्य सिर्फ हिन्दु धर्म का ही हिस्सा नहीं वरन् ये दोष विश्वयापी थे। कहीं पर रंग भेद तो कहीं पर नस्ल भेद। और हां जैनीयो में ऊंच नीच होती है। मैने स्वयं देखा है हरीजनों से छुतछात करते हुए।सारांश यह है कि ये बुराईया हमारी है धर्म की नहीं अगर हमें विरोध करना ही है तो समाजसुधारक बनकर करें जैसे राजाराम मोहन राय ने किया था जैसे स्वामी दयानन्द सरस्वती ने किया था इन्होने समाज में व्याप्त बुराईयों का विरोध किया था न कि धर्म का, इन्होने धर्म का परिवर्तन भी नहीं किया था।और हां, आपने कहा कि हम शताब्दीयों तक गुलाम रहे ओर हमने विरोध नहीं किया ये सत्य नहीं है, महाराणा प्रताप, पृथ्वीराज चौहान जैसे कई उदाहरण है मुगल कालीन विरोध के।इसलिये मैं यही कहना चाहता हूं कि हम समाज सुधारक बनें न की धर्म कि उपेक्षा करें।
ReplyDeleteमैं क्षमा चाहता हूँ | Yugals State – मोलिकता सबसे ज़रूरी, पर लिखने के लिए मेरी मजबूरी नहीं...
ReplyDeleteमैं क्षमा चाहता हूँ उनसे जो जरा आधुनिक हैं जिन्हें होली का त्यौहार नहीं सुहाता कि इस त्यौहार मैं...