Friday, March 31, 2006

जय हो आधुनिकता की


आजकल के आधुनिक विचारों के नौजवान क्या सोचते हैं, सोचकर आश्चर्य होता है। अपने ही धर्म की बुराई करना तो आजकल फैशन हो गया है। आज मैने एक बुद्धिजीवी कि वेबसाईट पर एक आलेख धर्म या ढोंग को पढा तो मन ही मन नारा लगाया कि जय हो आधुनिकता की
माना कि धर्म मे कई खामियां होती है। परंतु धर्म ही सदाचरण का कारक भी होता है।
धर्म का अर्थ
क्या होता है धर्म का अर्थ, धर्म को परिभाषित करते हुए कह सकते हैं कि धर्म वह है जो हमारे आचरण को मर्यादित करता है। हमारी सीमाएं बनाता है। धर्म में मन का विश्वास जुडा होता है। धर्म मनुष्य को संस्कारशील बनाता है।
धर्म के ठेकेदार
पंडे पुरोहित, धर्म के नाम पर राजनिती करने वाले धर्म के ठेकेदार बनते हैं। इसका एकमात्र कारण आमजन में अज्ञानता है। इन लोगों के कार्यों के कारण हम धर्म को गलत नहीं मान सकते। क्योंकि यह कोई सर्वमान्य सत्य नहीं है कि पंडा ब्राह्मण जो कर रहा है वह धर्म कार्य कर रहा हैं। हो सकता है वह आपकी धार्मिक भावनाए भडका कर अपना उल्लू सीधा कर रहा हो। इन लोगों के कार्यकलापों को धर्म कार्य नहीं कहा जा सकता।
और यदी कोई व्यक्ति इन लोगो को ही धर्म के स्वरूप मानकर धर्म से विरक्त होता है तो वह व्यक्ति मूर्ख ही हो सकता है।

3 comments:

  1. अनुनाद सिंहFriday, March 31, 2006 5:07:00 PM

    इसने कम शब्दों में बडी सार्थक बात कही है आपने | शुरु-शुरु में धर्म "सत्य की खोज", मानवमात्र का कल्याण , सुव्यवस्था आदि बनाने के लिये ही चला | ये तो लोगों पर निर्भर करता है कि धर्म और ढोंग में अन्तर करना सीखें |

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  2. धन्यवादआपकी बात कि लोगो पर निर्भर करता है धर्म व ढोंग मे अंतर करना बहुत अच्छी लगी।

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  3. संजय बेंगाणीFriday, March 31, 2006 7:16:00 PM

    आप चाहें तो इस लेख को अनुगूंज का हिस्सा बना सकते हैं. आपने अमित के जिस लेख का जिक्र किया हैं वह भी अनुगूंज के तहत ही लिखा गया हैं.आप इस लिंक से अधिक जानकारी पा सकते हैं-http://www.akshargram.com/sarvagya/Anugunj

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