Tuesday, May 16, 2006

आरक्षण किसी का हक नहीं है

चलो आप यह बात तो स्वीकार करते हैं कि दलितों का सामाजिक स्तर ऊंचा नहीं हुआ है।
अब मैं आपके प्रश्नों के जवाब देता हूँ।
मेरी पिछली पोस्ट में मेरे चिठ्ठाकार भाईयों ने कमेंट्स किये।
उनमें से आशीष जी ने कुछ प्रश्न किये, कुछ प्रतीक ने छाया भाई ने आरक्षण का विरोध किया तथा सृजन शिल्पी ने समर्थन किया। अब मैं आरक्षण विरोधियों के तर्कों के उत्तर देने के प्रयास करूंगा।

"""१.माना दलितो को आरक्षण नौकरी के लिये चाहिये, अब उन्हे पदोन्नति के लिये आरक्षण क्यों चाहिये ?"""
आशीष जी आरक्षण दलितों का सामाजिक स्तर सुधारने के लिये किया गया प्रयास है। पदोन्नति के लिये आरक्षण भी इसी कार्य का एक हिस्सा है। जिससे कि उंचे पदों पर भी पिछडी जातियों के लोग आयें ओर उनका प्रतिनिधित्व करे।

"""२.दलितो को शिक्षा के लिये आरक्षण दे दिया, पढ लिख गये, अब उच्च शिक्षा के लिये आरक्षण क्यो चाहिये ?"""
आरक्षण का प्रमुख उद्देश्य दलितों को शिक्षित करना है अब इसमें आप ये कहैं कि दलित को तो सिर्फ साक्षर करदो, तो फिर बाकी पढाई की भी क्या जरुरत है। दलित अपने स्तर पर किये प्रयासों द्वारा उच्च शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाता है क्योंकि अकसर दलित गरीब होता है।

"""३.पिता ने आरक्षण के द्वारा नौकरी पा ली, अब बच्चे को आरक्षण क्यों चाहिये ?
इसका जवाब बहुत आसान है। - पूत्र जिन्दगी भर पिता पर बोझ नहीं बन सकता, उसको भी घर को चलाना ही पडेगा। पिता के जमाने के कॉम्पीटीशन में ओर अभी के में कितना अन्तर है ये सभी जानते हैं। प्रतियोगिताओं में आरक्षित वर्गों कि मेरिट उंची होना प्रमाण है कि कॉम्पीटीशन बढ गया है। इसलिये बच्चे को आरक्षण की आवश्यकता है। हमारे देश में पिता का राशन कार्ड में नाम होने के बावजूद पुत्र व्यस्क होने पर अपना राशन कार्ड अलग बनाता है क्योंकि उसका संघर्ष उसका अपना होता है।

"""५.आप अपने आसपास मे आरक्षण द्वारा लाभित ऐसे व्यक्ति का नाम बता दिजिये जिसने अपनी जाति के उद्धार के लिये काम लिया हो ?
ऐसे हजारों लाखों लोग है जो अपनी जाति के उद्धार के लिये प्रयासरत हैं। जिनके नाम कोई नहीं जानता जिनके प्रयास कोई नहीं जान पा रहा।
कितने ही ऐसे भारतीय हैं जिन्होने स्वतंत्रता के आंदोलन में सक्रीय भुमिका निभाई पर क्या हम सबके नाम जानते हैं। हां पर मैं अवश्य ऐसे कई व्यक्तियों और संस्थाओं को जानता हूं जो अपनी जाति के उद्धार के लिये कार्य कर रहैं है।

"""६.किसी भी छात्रावास मे जाइये और किसी से भी पूछिये कि सरकार द्वारा दी जाने वाली स्कालरशीप के पैसो का ये छात्र क्या उपयोग करते है ?
मेरा आधा जीवन छात्रावास में गुजर गया। मैं जानता हूं कि किस प्रकार छात्र अपनी स्कालरशिप का उपयोग करता है। कुछ लोगो के गलत उपयोग को देखकर सभी को गाली नहीं दी जा सकती। लडके अपनी किताबें ओर साल भर के एक जोडी कपडे स्कालरशिप से खरीदते हैं। दलितों की स्थिती देखने के लिये उनमे रहना आवश्यक है।

"""७. आपके अनुसार मौजुदा आरक्षण व्यवस्था ने ५७ साल मे कुछ नही किया (जातिवाद/छुवा छुत बरकरार है), लेकिन क्यो ? क्या यह वर्तमान व्यवस्था की असफलता नही है ?
ये आपने सबसे अहम सबाल किया आशीष जी तथा ये प्रश्न मैने कई लोगों के मुह से सुना और पढा है।
इसके जवाब में मैं यह कहना चाहता हूं कि इतने सालों में आरक्षण व्यवस्था कुछ तो किया है। हां ज्यादा असर नहीं हुआ तथा (जातिवाद/छुवा छुत बरकरार है) लेकिन यह व्यवस्था कि असफलता नहीं है। व्यवस्था अपना कार्य कर रहीं है परन्तु इसकी गती धीमी है।
यदी कोई दवा किसी रोग को अत्यंत धीमे ठीक कर रही है और उसका असर नजर नहीं आरहा तो दवा बन्द नहीं की जाती बल्की उसकी मात्रा में ईजाफा कर दिया जाता है, रोगी को मरने के लिये नहीं छोड दिया जाता। एक और उदाहरण लो हमारा कोई कार्य सरकारी दफ्तरों में लालफीताशाही के कारण यदी धीमी गती से होता है या फिर होता ही नहीं है तो क्या हम प्रयास बन्द कर देते हैं। नहीं ना। तो फिर आरक्षण भी धीरे धीरे असर कर रहा है।

और प्रतीक भाई मैं आपसे भी कहना चाहता हूँ कि वर्गों के मध्य संघर्ष तो सदियों से इस देश में चलता आरहा है, आरथक्षण से वह नहीं बडेगा। आरक्षण से दलितों की सामाजिक हैसियत मे सुधार आएगा। हां अन्य वर्ग उनकी ईज्जत करेंगें इसका मैं नहीं कह सकता। हां इतना कह सकता हूं कि जब तक इज्जत नहीं होगी आरक्षण मिलता रहेगा।
हो सकता है आने वाले 25 वर्षों में सभी वर्ग समान हो जाए तो तब इस आरक्षण कि जरूरत नहीं पडे। सृजन शिल्पी ने मेरे पोस्ट पर लिखा है कि यदि सामाजिक व्यवस्था के कर्णधारों ने संविधान के प्रावधानों को लागू करने में ईमानदारी और सदाशयता दिखाई होती तो शायद वैसे हालात काफी पहले ही पैदा हो सकते थे, और आरक्षण समाप्त हो सकता था।
आरक्षण योग्यता को नहीं खा रहा हैं बल्कि छुपे हुए योग्यता का विकास कर रहा है।
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि आरक्षण किसी का हक नहीं है बल्कि यह तो प्रयास है पिछडों को उबारने का।

 

8 comments:

  1. युगल जी लेख अच्छा है, निष्पक्ष विचारों का द्योतक है। बधाई।
    आप जैसे युवा बुद्धीजीवियों को मेज पर रखे सामान की बात के अलावा नये सामान रखने और उनके फायदे-और नुकसान की बात भी समझानी होगी। निश्चित रुप से अंधेरी गलियों में प्रकाश फैलेगा। सभी वर्गों को साथ मिलकर सोचना है । तभी सभी युवा एक दूसरे पर विश्वास और सहयोग कर पाएंगे।
    प्रेमलता पांडे

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  2. सिर्फ एक सवाल और

    इलाहाबाद के घाट पर मृतक संस्कार कर दान दक्षिणा पर जिने वाले पडों को आरक्षण क्यो नही ? छत्तैसगड के बैरागी(ब्राम्हण) जो आज भी दक्षिणा पर जिते है उन्हे आरक्षण क्यो नही चाहिये ?

    मेरा विरोध आरक्षण से नही है, विरोध है जाति आधारित आरक्षण से है ! ये जाति छुवा छुत को नष्ट नही करेगा, उल्टे बढायेगा !

    कब तक आप वैशाखी का सहारा देंगे ? आरक्षण इन वर्गो को अपाहिज बना रहा है ! कितने ही उदाहरण मिल जायेंगे सरकारी सुविधाऒ के दूरूपयोग के !


    आरक्षण मत दो, पढने के लिये स्कालरशीप दो, फीस माफ कर दो, पुस्तके दो, आनेजाने के लिये साधन दो !

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  3. आशीष भाई, पंडों की बात करके आप खुद फस रहे हैं | पंडों का शोषण नहीं हुआ है, वे खुद सबका शोषण करते हैं | यदि वे पिछडे हैं, तो निश्चित ही यह उनकी अकर्मण्यता और अयोग्यता का परिचायक है | अवसर पाकर भी आगे न बढ पाना एक बात है, और अवसर छीने जाने के के कारण पिछडापन दूसरी बात |

    और अब बैशाखी की बात | एक व्यक्ति जिसका पैर मार-मार कर तोड दिया गया हो, उसके लिये बैशाखी ही चाहिये | वरना उसका हाथ भी टूट सकता है | जब उसका जख्मी पैर ठीक हो जायेगा, वह खुद ही वैशाखी को फेक देगा |

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  4. प्रेमलता जी सराहना तथा पधारने के लिये धन्यवाद।
    और आशीष भाई आपको आपके सवाल का जवाब शायद तेजप्रताप से मिल गया होगा और आप संतुष्ट भी हो गये होंगे।

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  5. क्या यह विरोधाभास नहीं है?

    "....पूत्र जिन्दगी भर पिता पर बोझ नहीं बन सकता, उसको भी घर को चलाना ही पडेगा।"

    "....आशीष भाई, पंडों की बात करके आप खुद फस रहे हैं| पंडों का शोषण नहीं हुआ है, वे खुद सबका शोषण करते हैं | यदि वे पिछडे हैं, तो निश्चित ही यह उनकी अकर्मण्यता और अयोग्यता का परिचायक है | अवसर पाकर भी आगे न बढ पाना एक बात है, और अवसर छीने जाने के के कारण पिछडापन दूसरी बात|"

    निष्कर्ष: यदि पिता के बाद पुत्र आरक्षण मांगता है, तो वह पिता-पुत्र दोनों की अकर्मण्यता और अयोग्यता का परिचायक है.

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  6. लेख बहुत अच्छा है, युगल.

    काफ़ी गहरी सोच की जरुरत है, प्रयास अच्छा है.तुम जैसे नौजवानों को बीडा़ उठाना होगा बदलाव का.

    समीर लाल

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  7. पधारने पर धन्यवाद अमित जी एवं समीर लालजी
    पहली बात तो यह निष्कर्ष सर्वथा अनुचित है कि यदि पिता के बाद पुत्र आरक्षण मांगता है, तो वह पिता-पुत्र दोनों की अकर्मण्यता और अयोग्यता का परिचायक है
    लोग किस प्रकार की परिस्थितीयों में गुजर बसर करते है तथा उनका संघर्ष कितना है ये तो बस वे ही जानते है जो उन परिस्थितीयों से दो चार हो रहै हों।

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  8. मैं आशीष की इस बात से सहमत हूँ-
    आरक्षण मत दो, पढने के लिये स्कालरशीप दो, फीस माफ कर दो, पुस्तके दो, आनेजाने के लिये साधन दो !

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