Wednesday, May 10, 2006

क्या वाकई में भारत में आरक्षण का प्रयोजन सिद्ध हो गया है?

Wednesday, May 03, 2006 को मैनें मेरे चिठ्ठे आज का सवाल पर एक प्रश्न किया था कि क्या भारत में आरक्षण का प्रयोजन सिद्ध होगया है?
और मुझे ramu_ag@yahoo.com द्वारा जवाब मिला था कि
"""अ.जा./अ.ज.जा. के कुछ व्यक्ति वर्तमान उच्च पदों पर हैं, कुछ अत्यन्त धनवान हैं, कुछ करोड़पति अरबपति हैं, फिर भी वे और उनके बच्चे आरक्षण सुविधाओं का लाभ उठा रहे हैं, ऐसे सम्पन्न लोगों के लिए आरक्षण सुविधाएँ कहाँ तक न्यायोचित है? कब तक चलेगा ऐसा?"""
इसके बाद मैने कई चिठ्ठे पढे जो आरक्षण का विरोध कर रहै हैं। देश में आरक्षण का नाग फुंफकार रहा है, नेता जी ने आग को हवा दे है। जितना मैं पढ सका उतना पढने के बाद मेरे मन में ये प्रश्न आता है कि लोग आरक्षण का विरोध कर रहे हैं या कि आरक्षित लोगों का। अभी दिल्ली में मेडिकल के छात्रों ने जुते साफ किये, झाडू लगाया।
मेरा कहना है कि जुते साफ करने वालों तथा झाडू लगाने वालों को अपमानित करना कहां तक न्यायोचित है?
ramu_ag@yahoo.com का कहना है कि आरक्षण का प्रयोजन सिद्ध हो चुका है।
मैं सभी से पूछना चाहता हूं कि क्या वाकई में क्या वाकई में SC, ST, OBC में आने वाली जातियों का सामाजिक स्तर उठ गया है। क्या वाकई में इन लोगों को समाज में इज्जत की नजर से देखा जाता है?
आज सुबह जब मैं घर के बाहर आया तो मैने देखा कि हरिजन झाडू लगा रही थी और साथ में कचरा ट्राली लेकर चल रही थी मेरे पडोस की सभी महिलाएं ज्यादातर ब्राह्मण, जैन, राजपूत, वैश्य इत्यादी दो फीट दूर से ट्रोली में कचरा फैंक रहीं थी। थोडी देर बाद जब वो रोटी लेने आयी तो सारी महिलाएं उस हरिजन महिला के टोकरे में दूर से ही रोटीयां फैंक रही थी। वो महिलाएं उस हरिजन महिला के छूना नहीं चाहती थी। इसलिये दूर से ही रोटियां फैंक रहीं थी।
और ये घटना पूरे देश में रोज सवेरे घटती है।
तो फिर कहां से लोगों को लगता है कि इन लोगों का सामाजिक स्तर बढ गया है।
लोग उसके छूने से डर रहै हैं कि कहीं अपवित्र न हो जाए, क्योंकि वो मल मूत्र साफ करके आयी है।
मैं आपको एक द्श्य दिखाता हूं।
सोचिये कि एक ऐसा ब्राह्मण जो छूआछूत करता हो घायलावस्था में हाई-वे पर पडा है तथा दूर दूर तक कोई नजर नहीं आरहा और थोडी देर बाद एक ओर से कंधे पर झाडू उठाए एक हरिजन आरहा है वह घायल को देखते ही उसे बचाने कि सोचता है तथा घायल को कंधे पर उठाकर ले जाता है तो क्या वो घायल ब्राह्मण हरिजन से मना करेगा कि मुझे मत छू, पहले नहाकर आ?
आज भी देश के कई हिस्सों में रोज दलितों का अपमान होता है।
तो फिर कहां से इनका सामाजिक स्तर बढ गया है?
आज भी राजस्थान में कई जगह दलित दुल्हों को घोडी से उतार दिया जाता है।
क्या दलित हिन्दु नहीं है, क्या उन्हे घोडी पर बैठने का हक नहीं है ?
एसे ही कई कारण है जिस वजह से सरकार ने आरक्षण का प्रावधान कर इनका सामाजिक आर्थिक स्तर उठाने का कदम उठाया था।
राजस्थान की आज की खबर ही लो (सोजन्य से दैनिक भास्कर)
अल्लाह बख्श, जालोर, 9 मई। तिलोडा के राजकीय विध्यालय में मेघवाल समाज के पांच बच्चे पढ रहै हैं, जिनको विधालय के अध्यापक और प्रधानाध्यापक प्रताडित करते हैं, तथा जातिसूचक गालियां देते हैं। जब बच्चों ने ये बाते घर पर बताई तो  बच्चों के दादा अध्यापकों से मिले तो अध्यापकों ने उनके साथ भी गाली गलोज की।
दादा फिर कलेक्टर से मिले।
तथा अब जांच बैठा दी गई है।
पता नहीं क्या होगा इस जांच का?
इस देश के हर शहर गांव में कभी न कभी इस तरह की घटनाएं होती रहती है तो फिर कहां से आरक्षण का प्रयोजन सिद्ध हो गया है।
लोग कहते हैं कि आरक्षण का आधार आर्थिक होना चाहिये जिससे कि वाकई में गरीबी दूर होगी(मेरा भी यही मानना है)।
लेकिन मैं ये कहता हूं कि ये कोन तय करेगा कि फलाना व्यक्ति गरीब है। जाहिर है कि ये कार्य सरकारी तंत्र द्वारा किया जाएगा तो क्या विश्वास किया जाए कि सरकारी लोग सही कार्य करेंगे।
पूरे देश में BPL सूचियां बनाई गयी लेकिन इसमें कई अमीरो ने भी अपने नाम जुडा लिये हैं।
सब ये जानते हैं कि फलानी जाती वाकई में निम्न जीवन व्यतीत कर रहीं हैं। तो इसीलिये आरक्षण का आधार जातिगत रखा गया क्योंकि आज भी इस देश में कुछ लोगों को निम्न जाति का कह कर हैय द्ष्टी से दैखा जाता है।
आखिर में
मेरा मानना यह है आरक्षण का प्रयोजन सिद्ध नहीं हुआ है।

8 comments:

  1. आपके लिये मेरे कुछ प्रश्न
    १.माना दलितो को आरक्षण नौकरी के लिये चाहिये, अब उन्हे पदोन्नति के लिये आरक्षण क्यों चाहिये ?
    २.दलितो को शिक्षा के आरक्षण दे दिया, पढ लिख गये, अब उच्च शिक्षा के लिये आरक्षण क्यो चाहिये ?
    ३.पिता ने आरक्षण के द्वारा नौकरी पा ली, अब बच्चे को आरक्षण क्यों चाहिये ?
    ५.आप अपने आसपास मे आरक्षण द्वारा लाभित ऐसे व्यक्ति का नाम बता दिजिये जिसने अपनी जाति के उद्धार के लिये काम लिया हो ?
    ६.किसी भी छात्रावास मे जाइये और किसी से भी पूछिये कि सरकार द्वारा दी जाने वाली स्कालरशीप के पैसो का ये छात्र क्या उपयोग करते है ?
    ७. आपके अनुसार मौजुदा आरक्षण व्यवस्था ने ५७ साल मे कुछ नही किया (जातिवाद/छुवा छुत बरकरार है), लेकिन क्यो ? क्या यह वर्तमान व्यवस्था की असफलता नही है ?

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  2. युगल भाई, यह बताओ कि क्या आरक्षण देने से दलितों की सामाजिक हैसियत सुधर जाएगी? उन्हें अन्य वर्गों से इज़्ज़त मिलने लगेगी? या फिर आरक्षण से वर्गों के मध्य संघर्ष और बढ़ेगा?

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  3. मै आरक्षण का विरोध करता हूँ।

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  4. मैं आप सभी के प्रश्नो के उत्तर अगली पोस्ट में देने का प्रयास करुंगा

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  5. मुझे ऐसा लगता है कि भारत में ऐसे हालात बनने में कम से कम 25 वर्ष और लगेंगे जब आरक्षण की किसी को जरूरत नहीं होगी। लेकिन यदि सामाजिक व्यवस्था के कर्णधारों ने संविधान के प्रावधानों को लागू करने में ईमानदारी और सदाशयता दिखाई होती तो शायद वैसे हालात काफी पहले ही पैदा हो सकते थे। इस विषय पर कुछ प्रासंगिक विचार एवं प्रतिक्रियाएँ मेरे ब्लॉग पर भी पढ़े जा सकते हैं।

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  6. ३.पिता ने आरक्षण के द्वारा नौकरी पा ली, अब बच्चे को आरक्षण क्यों चाहिये ?
    i yadi pita ko aarakshanna ke dwara naukri mil hai to wah apne putra ko achhi siksha dene me samarth hai, ki wah koi bhi comptetion exam nikalne me samarth hai agar aap is baat se samarth nahi hai to aapko ye baat bhi manni padegi ki is prakar to har us bachhe ko aarakshanna dena padega jo ki comptetive exam de raha hai aur sirf isliye ki wo comtetion ka samna nahi kar payega aur aarakshanna ke saath unhe aarthik sahayta bhi to milti hai chahe aarakshnna pane wala bade adhikari ka beta kyun na ho is ki bajaye aagar jati ki bajaye samaj ke un gareeb aur pichede logo ko aarakshann diya jaye to unka bhawishya kuch aur hi hoga


    phle chhatra star par aarahsnna dejiye aur scolar ship dejiye

    phir graduation ke liye aarakhsanna aur scolar ship dejiye

    aur phir post graduation ke liye aarakhsanna aur scolar ship dejiye

    phir naukri ke liye aarakshnna dejiye

    phir padonnti ke liye aarakshnna dejiye
    is tarah to logo ko apne pairon par khade hona, daudna sikhane ki bajaye unhe aarkshnna naam ki lathi pkda de gayi hai, is tarah to logo aarakshnn naam ki is lathi ki aadat pad jayegi aur kuch logo ko pad bhi gayi hai aur log iska galat phayeda utha bhi rahae hai sakshm hone ke baad bhi
    is tarah aarakshnna dene ki bajaye kewal unhe muft siksha de jaye aur ye behtar hai (aur iski jaroorat ho samaj ke sabhi tapke ke logo ko hai chae wo dalit ho ya na hoir)
    aur uchcha siksha me aarkshnna dene ki bajaye unhe chatrawas aur comtetion exam ke tyaari ke liye sadhan diye jaye taki wah ye exam nikal sake aur iske baad bhi jo exam me succsess nahi hota hai wah agli bar phir tyaari kare mujhe lagta hai unhe bhi aarakshnna dene ki koi jaroorat nahi hai kyunki si tarah to desh me kai logo ke saath hota hai
    nahi to result to yahi niklega jis tarah desh me aaj kai aaraksh ke dwara seat to paa leta hai uchhsiksha sunsthano me par wo log fail ho jate hai jaise ki aaj iit aur iims me ho raha hai 500 ke aaspas log fail ho rahe hai aur in seato ke liye jo upukt log the jinho ne mehnat karke merit me aaye the unki mehnat ke bare me aap kya kahenge
    in sawalo ke jawab ke liye aapke agle post ka intjaar rahega

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  7. ३.पिता ने आरक्षण के द्वारा नौकरी पा ली, अब बच्चे को आरक्षण क्यों चाहिये ?
    i yadi pita ko aarakshanna ke dwara naukri mil hai to wah apne putra ko achhi siksha dene me samarth hai, ki wah koi bhi comptetion exam nikalne me samarth hai agar aap is baat se samarth nahi hai to aapko ye baat bhi manni padegi ki is prakar to har us bachhe ko aarakshanna dena padega jo ki comptetive exam de raha hai aur sirf isliye ki wo comtetion ka samna nahi kar payega aur aarakshanna ke saath unhe aarthik sahayta bhi to milti hai chahe aarakshnna pane wala bade adhikari ka beta kyun na ho is ki bajaye aagar jati ki bajaye samaj ke un gareeb aur pichede logo ko aarakshann diya jaye to unka bhawishya kuch aur hi hoga


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    is tarah aarakshnna dene ki bajaye kewal unhe muft siksha de jaye aur ye behtar hai (aur iski jaroorat ho samaj ke sabhi tapke ke logo ko hai chae wo dalit ho ya na hoir)
    aur uchcha siksha me aarkshnna dene ki bajaye unhe chatrawas aur comtetion exam ke tyaari ke liye sadhan diye jaye taki wah ye exam nikal sake aur iske baad bhi jo exam me succsess nahi hota hai wah agli bar phir tyaari kare mujhe lagta hai unhe bhi aarakshnna dene ki koi jaroorat nahi hai kyunki si tarah to desh me kai logo ke saath hota hai
    nahi to result to yahi niklega jis tarah desh me aaj kai aaraksh ke dwara seat to paa leta hai uchhsiksha sunsthano me par wo log fail ho jate hai jaise ki aaj iit aur iims me ho raha hai 500 ke aaspas log fail ho rahe hai aur in seato ke liye jo upukt log the jinho ne mehnat karke merit me aaye the unki mehnat ke bare me aap kya kahenge
    in sawalo ke jawab ke liye aapke agle post ka intjaar rahega

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  8. aarakshan ka pravadhan nimn jaati ke uddhar ke liye kiya gaya tha per isse unka uddhar to nahi hua balki ye log aarakshan ko apna janm siddha adhikaar maanane lage, ji ki inhe apni saamajik prasthiti ko ucha karne ke liye muhaiyya karyaya gaya tha..
    pita chahta hai ki jis aarsakshan ka laabh uthakar usne noukari paayi hai, usi se uski santaan ko bhi noukari mil jaye..

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