आखिरकार हम अपनी हंसी को दबा नहीं पाये और सारे जोर जोर से हंसने लगे। बुढ्ढा भी अचकचाता हुआ नींद से जागने का नाटक करते हुए उठा।
उसने हमारी तरफ देखा, हम उसकी तरफ देखकर हंस रहै थे। तभी उसने आगे वाली सीट पर देखा तो पाया कि आगे तो लडका बैठा है। बेचारा बडा शर्मिंदा हुआ।
कोटा पहुंचने पर मैं लडकी के पास गया ओर मैने कहा कि क्या ये बुढउ तुम्हे परेशान कर रहा था तो उसने हामी में सर हिला दिया।
मैने उससे कहा कि जब हम कह रहै थे कि कोई परेशान कर रहा है तो फिर क्यों जवाब नहीं दिया। तो वो कुछ नहीं बोली। मैने उससे कहा कि "तुमने कुत्तों से सावधान" सुना होगा, अब नया सुनो बुढ्ढों से सावधान।
लडकी से मैने कहा कि यदी यही छेडखानी कोई लडका कर रहा होता तो तुम अभी तक उसके जूते पडवा देती फिर तुमने उसे क्यों बख्शा। लडकी निरुत्तर रही।
मैने आखिर उससे कहा कि अच्छा चलते हैं।
और मैं घर आगया अच्छी अच्छी यादें लिये।
एक अरोचक घटना का रोचक विवरण है, धन्यवाद
ReplyDeleteयह तो प्राय: हर भारतीय नारी के साथ सफर में, सड़कों में और हर सार्वजनिक स्थानों पर होता आया है.
ReplyDeleteशायद हम कभी सभ्य नहीं हो पाएंगे.
इसकी वजह यह भी है कि हमारे सामाजिक संस्कार किसी भी ऐसे कुकृत्य का विरोध सामाजिक बहिष्कार के भय से नहीं कर पाते.
परंतु ऐसा ही प्रयास जालस्थल पर किया गया है. पता है:
http://blanknoiseproject.blogspot.com/
मेरा अनुरोध है कि वहाँ अपनी इस प्रविष्टि की कड़ी और हो सके तो सम्पूर्ण प्रविष्टि ही वहाँ डालें.
रवि जी
ReplyDeleteकिस प्रकार डाली जाए प्रविष्टि यहां पर।