कहाँ चले गए थे मित्र. तुम्हारे वियोग मे तो दूबला हो चला हुँ. अब यही रहो और बतियाओ :)
बिना बताये कहाँ चले गये थे?ना चिठ्ठी ना पत्री? बहुत बुरी बात है। ऐसे चले जाना। खैर अब आये हो तो अब कहीं जाना मत, आपका एक बार फिर से स्वागत करते हैं।
अभी भी आप कोटा में ही हैं या कहीं और?
पुनर्स्वागत का धन्यवादमैं अभी कोटा में ही हुँदोस्तो के कमेंट पडकर अच्छा लगा।
पहले घर से काम करता था अब ऑफिस से शुरुआत है।
अरे वाह!!! हम तो तरस गये भई तुहार दरस को. न तुम लिख रहे हो न हमें ऐसा मैटर मिल रहा है कि वाह वाही लुटें. अब फटाफट लिखना जारी करो. इतने दिनों मे तो खुब मसाला इक्कट्ठा हो गया होगा. अब बिना बताये मत जाना. :)
नियमित रूप से लिखा करें. सबको अच्छा लगेगा -- शास्त्री जे सी फिलिपहिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती हैhttp://www.Sarathi.info
कहाँ चले गए थे मित्र. तुम्हारे वियोग मे तो दूबला हो चला हुँ. अब यही रहो और बतियाओ :)
ReplyDeleteबिना बताये कहाँ चले गये थे?ना चिठ्ठी ना पत्री?
ReplyDeleteबहुत बुरी बात है। ऐसे चले जाना।
खैर अब आये हो तो अब कहीं जाना मत, आपका एक बार फिर से स्वागत करते हैं।
अभी भी आप कोटा में ही हैं या कहीं और?
ReplyDeleteपुनर्स्वागत का धन्यवाद
ReplyDeleteमैं अभी कोटा में ही हुँ
दोस्तो के कमेंट पडकर अच्छा लगा।
पहले घर से काम करता था अब ऑफिस से शुरुआत है।
ReplyDeleteअरे वाह!!! हम तो तरस गये भई तुहार दरस को. न तुम लिख रहे हो न हमें ऐसा मैटर मिल रहा है कि वाह वाही लुटें. अब फटाफट लिखना जारी करो. इतने दिनों मे तो खुब मसाला इक्कट्ठा हो गया होगा. अब बिना बताये मत जाना. :)
ReplyDeleteनियमित रूप से लिखा करें. सबको अच्छा लगेगा -- शास्त्री जे सी फिलिप
ReplyDeleteहिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है
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