Tuesday, June 06, 2006

इसे खून पीना कहते है

मेरे महान देश की सरकार ने फिर से पेट्रोल डीजल के दाम बढा दिये। पूरे चार रूपये।
जिसने भी सुना भोचक्का रह गया।
मेरे एक मित्र का मानना है कि सरकार सडकों पर वाहनो का दबाव कम करने का प्रयास कर रही है।
सरकार का राग हमेशा की तरह वही पुराना है कि कच्चे तेल के दाम बढ रहै हैं। इसलिये सरकार घाटा नहीं खा सकती है और दाम बडाना मजबूरी बताती है। और फिर मेरे देश की तेल कम्पनीयां भी तो कह रही है की वे घाटे में चल रही है।
सच्चाई कोई नहीं जानता
आखिर क्या है सच्चाई, जब दुसरे मुल्कों में पेट्रोल के दाम कम है तो हमारे देश में उच्चतम स्तर पर क्यों?
इसका सिर्फ और सिर्फ एक ही कारण है कि हमारे देश की सरकारें संवेदनहीन है। दाम बढाने का जनता पर क्या असर पडता है इससे सरकार को कोई लेना देना नहीं है। लेकिन एक बात सोचने लायक है कि सरकारें जनता कमर क्यों तोड रही है?
सारा देश जानता है कि पेट्रोल डीजल के दाम बडने से कहां क्या असर होता है और कहां कितनी महंगाई बड जाती है?
आखिर सरकार की संवेदनहीनता का क्या कारण है जबकी इन लोगों को वोट मांगने हमारे बीच में ही आना पडता है?
जब भी दाम बढाए जाते हैं उसका कारण कच्चे तेल की कीमत में वृद्धी तथा सरकार को हो रहा घाटे को बता दिया जाता है, मैं ये जानना चाहता हूं कि आखिर सरकार को घाटा किस जगह पर हो रहा है। जिस मुल्य में तेल सरकार को पडता है उसी मुल्य में हमें तो नहीं बेचा जाता है बल्की बढाकर बेचा जाता है फिर सरकार को घाटा लगने का तो कोई सवाल ही नहीं खडा होता है।
सारा खेल रेवेन्यु का है
आखिर सारा खेल रेवेन्यु का है। एक लीटर पेट्रोल पर सरकार कर लगाकर द्वारा 17 से 19 रूपये तक बचाती है। जब ईंधन की कीमते एफोर्ड करना देश की जनता की जैब के दायरे से बाहर होता जा रहा है तो क्या सरकार  का इस वस्तु से रेवेन्यु कमाना कहां तक वाजिब है? कुछ कर केन्द्र सरकार लगाती है कुछ कर राज्य सरकार लगाती है।
आखिर ईंधन को रेवेन्यु के दायरे से बाहर क्यों नहीं कर दिया जाता?
मंत्री जी का क्या जाता है।
वे तो सरकारी खर्च के ईंधन पर यात्राएं करते हैं।
कम्पनीयों का झूठ
देश की कम्पनीयां हमेशा अपने आप को घाटे में बताती रहती है, मेरे समझ में ये नहीं आता की अगर ये कम्पनीयां इतनी घाटे में रहती है तो फिर डीलर को डिस्काउंट कहां से देती है?
क्या पेट्रोल कर दायरे से मुक्त हो पाएगा? शायद कभी नहीं।
सरकारों को ऐसे ही निरीह जनता का लहू पीना है और पीती रहैंगी। चाहै कोई सी भी सरकार आए खुं पीना बदस्तुर जारी रहैगा।

5 comments:

  1. अनूप शुक्लWednesday, March 17, 2010 6:58:00 PM

    हमारे एक दोस्त ने यह पोस्ट पढ़कर टिप्पणी दी- गर्मी है। खून ठंडा है। सरकार पीयेगी। खौलता तो न पीती।

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  2. संजय बेंगाणीWednesday, March 17, 2010 6:58:00 PM

    सरकार कई जगह जनता के हीत में (!!!)जबरदस्ती करती हैं कि आप इससे ज्यादा भाव नहीं रख सकते, इससे ज्यादा कमिशन नहीं दे सकते.दवाओं के मामले में अभी ऐसा हो रहा हैं. और जब खुद कि बारी आती हैं तब?

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  3. शायद आप जानते नहीं हैं खून पीना क्या होता है ।।
    वरना ऐसा आरोप ना लगाते ।।

    थोड़ा रिसर्च कीजिए - आपको आपके सवाल का जवाब मिल जाएगा ।।

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  4. aaj aapka blog maine pahli bar dekha padhkar achcha laga maine aapke aaraksnna wale post par kuch comment bhi diye hai waqt mile to jaroor padhiyega

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  5. hi
    main aap se poori trah sehmat hun.
    kyonki ab jab oil ke daam fir se usi jagah aa gaye to fir petrol ke daam abhu bhi kam nahi hue.

    aap ne kafi gahan veechaar prastut kiya hai.



    rakesh kaushik

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