Friday, January 28, 2011

गुस्सा और सहानुभूति

आज जब ऑफिस आया तो देखा की दरवाजे पर ताला लटक रहा था. मुझे बहुत अजीब लगा. कल ही स्टाफ को बोल कर आया था की हेड ऑफिस से कुछ दिनों में कोई भी आ सकता है तो अगले दिन से समय पर आने का प्रयास करें, लेकिन अगले दिन उसका असर उल्टा हुआ, ताला तक मुझे खोलना पड़ रहा था. मेरा ऑफिस का गार्ड तक नहीं आया था ऑफिस असिस्टेंस की तो क्या कहूँ वो बहुत दूर से आती है.

अब होना क्या था चाबी का एक सेट मेरे पास भी था लैपटॉप कंधे पर लटका कर ताला खोला. अन्दर जाकर गतिविधियाँ आरम्भ की. मैं मेरी ब्रांच में अकेला बैठा था मेरा स्टाफ अगले १५ मिनट तक ऑफिस नहीं आया.
जैसे ही मेरी सहायक ऑफिस आयी यहीं से वो कहानी शुरू होती है, इसके पीछे पीछे मेरा एक और कर्मचारी आया. आते ही मेने उससे पूछा की क्या बात हो गयी दोनों इतना लेट क्यूँ,

"सर मुझे टेम्पो ने लेट कर दिया, मैं खुद थोड़ी चाहती हूँ की लेट आऊं"

मेने कहा " ओ के"

उसने कहा " सर आप बस मुझसे ही कहते हो और भी लोग लेट आते है आप उनसे तो कहते ही नहीं"

उसके बाद मेने उसको बोला की आगे कल से याद रखना और समय पर आना, तो उसने बोला " सर में लेट नहीं आती हूँ आगे भी मुझे टेम्पो लेट कर सकता है इसमें मेरा दोष नहीं है,

मेने कहा की थोडा जल्दी चलो अपना हर काम १५ मिनट पहले से आरम्भ करो ताकि और जल्दी आ सको.
फिर उसका वही राग की सर मैं कुछ नहीं कर सकती, ये सुनकर मुझे बहुत गुस्सा आया,
मैं कुछ कह रहा हूँ सुनने का नाम नहीं ले रही बस अपनी ही कहे जा रही है.

मैंने उसको खूब डांटा. और ऑफिस के बाहर निकल आया. कुछ देर चहल कदमी करने के बाद जब मैं वापस अन्दर आया तो मैंने देखा उसका मुह उतर गया था.
मुझे लगा की मैंने कुछ ज्यादा ही कह दिया. वाकई में वो बहुत दूर से आती है. और पब्लिक ट्रांसपोर्ट पर निर्भर है. लेकिन मैं भी क्या करूँ जब मेरे बॉस मुझे फ़ोन करके पूछते है की की कोन कोन ऑफिस में आया तो में भी चुप सा रह जाता हूँ. मुझे बाद में उससे बड़ी सहानुभूति हुई. अब इस स्थिति में किया भी क्या जा सकता है. समय प्रबंधन स्वयं के हाथ में होता है चाहे आप का स्वयं का वाहन हो या पब्लिक ट्रांसपोर्ट......
और जब मेल चेक किया तो पता चला की इंडी ब्लोगर का एक कांटेस्ट चल रहा है जिसमे यह घटना का विवरण किया जा सकता है

कांटेस्ट का ट्विस्ट यह है की इसमें पाठको भी पुरस्कार दिए जायेंगे
यह ब्लॉग पोस्ट इंडी ब्लोगर की Close Up "Fire-Freeze" कांटेस्ट के लिए लिखी गयी है एवं आज सुबह की सच्ची घटना पर आधारित है. मैं अन्य ब्लोगर भाइयों से अनुरोध करता हूँ की वे भी इस कांटेस्ट में भाग ले तथा इस पोस्ट पर अपनी टिप्पणी जरूर छोड़े.
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6 comments:

  1. bharat le logon ko samay ki keemat yaad nahi hai

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  2. Bhai...

    you have to keep the guys in office leash.. yehi office ka niyam hai.. log bura mane toh mane ..ab kya kar sakte hai


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