Monday, December 07, 2015

आरक्षण प्रतिनिधित्व का अवसर है, कोई गरीबी हटाओ योजना नहीं

आरक्षण प्रतिनिधित्व का अवसर है, कोई गरीबी हटाओ योजना नहीं जो की आर्थिक आधार पर दिया जाए।

रक्षण का मूलभूत सिद्धांत यह है कि अभिज्ञेय समूहों का कम-प्रतिनिधित्व भारतीय जाति व्यवस्था की विरासत है। भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत के संविधान ने पहले के कुछ समूहों को अनुसूचित जाति (अजा) और अनुसूचित जनजाति (अजजा) के रूप में सूचीबद्ध किया। संविधान निर्माताओं का मानना था कि जाति व्यवस्था के कारण अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति ऐतिहासिक रूप से दलित रहे और उन्हें भारतीय समाज में सम्मान तथा समान अवसर नहीं दिया गया और इसीलिए राष्ट्र-निर्माण की गतिविधियों में उनकी हिस्सेदारी कम रही। संविधान ने सरकारी सहायता प्राप्त शिक्षण संस्थाओं की खाली सीटों तथा सरकारी/सार्वजनिक क्षेत्र की नौकरियों में अजा और अजजा के लिए 15% और 7.5% का आरक्षण रखा था। 

जो लोग कहते हैं की आरक्षण आर्थिक आधार पर होना चाहिए उन्हें पहले पता करना चाहिए की आरक्षण की जरूरत पड़ी क्यू फिर आर्थिक आधार की बात करना। संविधान में आरक्षण का आधार आर्थिक पिछड़ापन नहीं है। 


अनारक्षित वर्ग के कुछेक लोग आरक्षण को समाप्त करना चाहते हैं(सभी नहीं) और इसके लिए योग्यता की दुहाई देकर फिर से आरक्षित वर्ग को अयोग्य की गाली देते हैं। लेकिन यही जन्मजात योग्य लोग जरूरत पड़ने पर अयोग्य लोगों "हिन्दू एक हैं" कहकर साथ लेकर राम मंदिर बनवाने निकल पड़ते हैं और मौका मिलने पर भिखारी या नीच जात कहकर दुत्कार भी देते हैं। गर्व से कहो हम हिन्दू ( लेकिन आरक्षण विरोधी ) हैं। 


सभी हिंदुओं ने मिलकर ढांचा भी तोडा और सभी ने मिलकर मोदी सरकार भी बनायी। लेकिन अब जब बीजेपी आरक्षण का खुल कर समर्थन कर रही है तो कुछ जबरदस्त हिन्दू प्रधानमंत्री मोदी को भी जातिवादी गालियाँ देने लग गए हैं।


योग्यता यदि पैमाना है तो सबसे अधिक योग्य पूंजीपति लोग हैं। उनके कदमों मे प्रत्येक वस्तु होती है। वे प्रत्येक वस्तु का दोहन करते हैं। अभिनव बिंद्रा के पिता ने तीरंदाज़ी मे अपने पुत्र को योग्य करने के लिए एक साल मे एक करोड़ रुपये खर्च करके तीरंदाज़ी का प्रशिक्षण दिलवाया। 


ऐसे ही कई कुबेर हैं जो की भारत के सारे साधनो पर कब्जा जमाये हुए हैं। भारत मे 13% लोग भारत की 95% साधनो का उपभोग कर रहे हैं। इनसे योग्यता मे आप कहीं भी नहीं ठहर पाओगे। यदि योग्यता ही मात्र पैमाना हो तो आप और हम कहीं भी इनके आगे आ नहीं सकते। देश मे सिर्फ दो ही वर्ग रह जाएँगे शोषक और शोषित। एक वर्ग के पास सारे साधन और दूसरा वर्ग के पास कुछ नहीं। इसलिए योग्यता-योग्यता की पींपनी बजाना बेकार है। क्या भारत के सभी साधनो पर सिर्फ 13% पूँजीपतियों का अधिकार होना चाहिए। क्या भारत की सत्ता मे इन 13% पूँजीपतियों द्वारा प्रायोजित सत्ता होनी चाहिए?


जहां योग्यता धन से तुलती हो वहाँ योग्यता योग्यता नहीं होती। लोगों को पढ़ाई करने के भी अवसर नहीं मिलते हमारे देश मे। बचपन से ही काम धंधों मे घुसना पढ़ता है। बहुत सी जातियाँ ऐसी है जिन्हें शिक्षा का नाम सुनना भी नहीं है क्यूंकी उन्हे पैदा होते ही काम करना बहुत जरूरी है। क्या यह अच्छा है की भारत के कुछेक लोग ही योगयता के नाम पर भारत की सारी संस्थाओं मे घुस जाएँ और देश के संसाधनो के आनंद ले। देश की 80 % प्रतिशत जनता चुपचाप देखती रही, भूखी रहे, अविकसित रहे। 


देश की सफलता के लिए आवश्यक है की सभी वर्गों को लेकर आगे बढ़ा जाये। इसलिए संविधान मे आरक्षण का प्रावधान है जिससे की सभी वर्ग उनकी जनसंख्या के प्रतिशत के आधार पर देश को आगे बढ़ाने मे अपना योगदान दें।


कुछ मित्र आरक्षण समाप्त करने के लिए आरक्षित लोगों को नीचा दिखाते रहते हैं "कहते हैं की आरक्षित  वर्ग के डॉक्टर से इलाज नहीं करवाएँगे। मैं ऐसे मित्रों से कहना चाहता हूँ की ऐसे छींटाकशी करने से आरक्षण समाप्त नहीं होगा। आरक्षण को सिर्फ तभी समाप्त किया जा सकता है जब आरक्षित भोगी वर्ग ही देश हित में इसे समाप्त करने का मानस बनाये लेकिन ये तभी होगा जब समाज में भेदभाव और जातिगत कटुता की समाप्ति होगी, जब जाति के आधार पर कोई किसी को "अत्यंत घटिया और निम्न स्तर" का नहीं कहेगा। जो आरक्षण ले रहे हैं वे तबके डरे हुए हैं कि अगर उनसे आरक्षण छिन गया तो वे उसी दौर में वापिस जा सकते हैं जहाँ वे पहले थे। 




आरक्षण मिटाना है तो योग्य और अयोग्य कहना बंद करो। नस्लीय श्रेष्ठता की भावना समाप्त करो।  सभी हिन्दू योग्य हैं, बस किसी को समुचित  अवसर ना मिलने के कारण वे पिछड़ गए हैं। आरक्षण से उन्हे अवसर मिल रहे हैं और वे अपनी योग्यता सिद्ध कर रहे हैं। एससी एसटी ओबीसी की कट ऑफ सामान्य के बराबर आ गयी है। देश के संसाधनो पर सभी वर्गों का बराबर अधिकार है। आरक्षित तबका उनकी जनसंख्या के हिसाब से अभी संसाधनो से बहुत दूर है। 



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