घबराइये नहीं भारत में नहीं चीन में।
जी हां यह सत्य है, चीन में शानदोंग प्रान्त में एक शिक्षक को लोकतंत्र के विषय में लेख प्रकाशित करने के आरोप में दस साल की सजा सुनाई गई है। उसका जुर्म यह है कि उसने अपने लेख में सरकार विरोधी विचार व्यक्त किये। चुंकि इस घटना का ताल्लुक सुचना के प्रसार की एक व्यवस्था इंटरनेट से है, जिसे आजाद अभिव्यक्ति का सबसे प्रमुख औजार माना जाता है और जिसे अनुशाषित करने कि प्राय: कोई कोशिश नहीं होती, इसलिये मैं इससे बडा चकित हूँ।
चीन में एक पत्रकार भी ऐसे ही जुर्म में जेल कि हवा खा रहा है। हाल ही में चीन में इंटरनेट को नियंत्रित करने की जितनी भी कोशिशे कि गई है उन सबसे मेरे मन में सवाल उभर रहै हैं। कई इंटरनेट कंपनियां अपने व्यापार के मद्देनजर चीन सरकार के आगे घुटने टेक रहीं है।
हालांकी इंटरनेट पर पचास फीसदी सामग्री अश्लीलता संबंधी है और आतंकवादी गतिविधियों में भी 11 सितंबर के बाद इंटरनेट का इस्तेमाल बडा है। लेकिन इससे किसी को भी इनकार नहीं होगा कि सूचना तकनीक के विश्वव्यापी प्रवाह में जो भुमिका इंटरनेट निभा रहा है, शायद ही कोई दुसरा औजार या तकनीक कर सके। अगर इंटरनेट को सीमित दायरे में कैद किया जाए तो सुचना साम्राज्य अपना वास्तविक औचित्य ही खो देगा, क्योंकि सूचना निरंकुश सत्ताओं की मनमानी की शिकार होने के स्थान पर बंधनो से मुक्त होकर स्वस्थ समाज के निर्माण में सहयोग देती है।
गूगल को भी चीन में सेल्फ सेंसर्ड वेबसाईट खोलनी पडी है। चीन में सरकारी स्तर पर खुलापन और उदार रवैया संभव नहीं है, जैसा कि भारत में विदेशी कंपनीयों को हासिल है। यहां तो गूगल अर्थ डाट कोम पर राष्ट्रपति भवन, प्रधानमंत्री निवास और महत्वपूर्ण ठिकाने देखे जा सकते है। पर चीन में ऐसा नहीं है वहां इंटरनेट पुलिस है जो विदेशी वेबसाइटों पर निगरानी रखती है।
इस संभावित प्रतिबंध और बाजार के खोने के डर ने ही गूगल को चीन के लिये अलग से नई वेबसाइट(गूगल डॉट सीएन) बनाने पर मजबूर कर दिया, जिस पर चीनी भाषा में कुछ चुनिंदा सामग्री तथा बेहद सीमित वेब एक्सेस मिल पाएगा।
शायद गूगल का मानना है कि चीनी समाज और बाजार से हमेशा के लिये बाहर हो जाने से अच्छा विकल्प यही है।
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युगल मेहरा
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युगल मेहरा
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