Friday, April 28, 2006

वो रहस्यमयी कोन था ??? (My Journey)

कोटा से दिल्ली ट्रेन यात्रा तथा दिल्ली के बाद रोहतक और वहां पर शादी।
कसम से मजा आगया हरियाणा में भी शादी का, वैसे यहां उतने कार्यक्रम नहीं होते हैं जितने कि हमारे राजस्थान में होते हैं परन्तु हरियाणा की बात ही कुछ और है। रोहतक के पास एक गांव है कबूलपुर बस वहीं से रवाना होनी थी बारात।
अब बारात रवाना हूई तो समाचना पहूंची। यहां हम खूब नाचे। एक बात मैने नोट की वो ये थी कि यहां पर वर वधू के फेरों की रस्म दिन में ही हो जाती है जबकी राजस्थान में तो ये मध्यरात्री का कार्यक्रम है।
खेर शाम को मेरे एक मित्र संजीव ने कहा कि उसे शोच जाना है। वो भी कोटा से ही वहां पर गया था। मैने उससे कहा कि चल भई मैं भी फ्रेश हो लूंगा। अब गांव में तो शोच खुले आकाश के नीचे ही जाना पडता है। हम तीनो यानी की मैं, मुकेश तथा संजीव तीनों उचित स्थान की तलाश करने लगे।
हमने एक बुजुर्ग ग्रामीण से पुछा कि "कहां जाएं?"
तो उस बुजुर्ग ने हमें एक तालाब की तरफ का रास्ता बताया। ये जगह गांव से जरा बाहर थी। हमने कहा चलते है।
धूल का गुबार
मैने कहा "यार ये हवा में इतनी धूल क्यों हो रही है?"
हम चक्कर में पड गये कि ये इतनी धूल कैसे हो रही थी क्योंकि उस समय हवा एकदम शान्त थी। खेर हम इसी रास्ते पर आगे बडते गये। थोडा और चले तो देखा कि वहां पर गायों का रैला लगा हूआ था। कम से कम तीन चार हजार गायें थी वहां, और सारी धूल में मस्ती कर रहीं थी, अब मुझे हवा में इतनी धूल होने का कारण तो समझ में आगया था लेकिन इतनी सारी गायें एक साथ देखकर चकरा गया था। मैने जिन्दगी में इतनी गायें एक साथ नहीं देखी थी।
संजीव ने लाल रंग की शर्ट पहन रखी थी और अभी उजाला भी फैला हूआथा इसलिये मैने उससे शर्ट उतारने को कहा क्योंकि हो सकता है इन गायों में कोई सांड भी हो।
हम वहां से आगे बडे तो हमें एक मंदिर नजर आया। काफी विशाल मंदिर था। एक गांव वाला सामने से आरहा था मैने उससे पूछा कि ये किसका मंदिर है तो उसने बताया की हनुमान जी का है।
बदंरो का मेला
जिस तरह हमने गायें ही गायें देखी थी, अब हमें बंदर ही बंदर नजर आ रहै थे। असंख्य बंदर थे वहां, मुझे लग रहा थे कि जैसे मैं एलिस इन वंडरलेंड में हूँ। उन बंदरो से बचते हुए हम और आगे बडे तो मंदिर तक पहुंच गये। वहां पर एक विशाल तालाब था। लेकिन मैने सोचा कि हम यहां मदिंर के पास शोच नहीं कर सकते। मैने किसी से पुछा कि शोच के लिये कहां जाए? उस आदमी ने एक तरफ जाने को कहा उस तरफ वृक्षों कि बाड सी आ रही थी। उस आदमी ने बताया कि इन पेडों के बीच में एक पगडंडी जा रही है। तथा इस पगडंडी के जरीये इन पेडों की श्रंखला पार करने के बाद एक और तालाब आएगा, आप वहीं शोच कर लिजिएगा।
हमने जब इस वृक्ष श्रंखला को देखा तो लगता ही नहीं था कि इसके पार कोई तालाब होगा, ऐसा लगता था मानो मीलों लम्बा जंगल होगा।
संजीव का प्रेशर बढने लगा था। हमने पेडों में पगडंडी देखी और चल पडे। ऐसा लग रहा था जैसे किसी गुफा में चल रहै हों। तभी हम क्या देखते हैं कि सामने से एक नाटा सा तथा मोटा सा आदमी मस्त चाल से हमारी दिशा में आ रहा था। वो आदमी करीब साडे तीन फीट का होगा और मोटाई में अमजद खान की तरह था। उसके पीछे बाडीगार्ड की तरह दो आदमी चल रहे थे। जैसे ही वे हमारे नजदीक आये हम जरा साईड में हट गये। वे हमें देखे बिना चले गये। उन्होने हम पर जरा भी ध्यान नहीं दिया। मुझे ये बात बडी अटपटी सी लगी।
खैर हम जरा सा आगे बडे तो देखा कि सामने खुला मैदान था। वृक्षों की श्रंखला समाप्त हो गई थी। लम्बा चौडा मैदान और उस पर लगी हरी हरी घास अत्यंत सुंदर लग रही थी।
लेकिन एक बात थी।
वो बात ये थी कि वहां पर तालाब नहीं था। हमने चारों तरफ नजरें दोडाई लेकिन कोई तालाब न
जर नही आया। पानी के नाम पर छोटे छोटे पोखर बने हुए थे। हमने फेसला किया कि इन पोखरों के पानी का ही इस्तेमान कर लेंगे।
हम तीनों ने अपनी अपनी पोजीशन संभाल ली।
उस वक्त मैने एक आदमी को देखा, यही वो रहस्यमयी आदमी था जिसका कि टाइटल में जिक्र हुआ है, मैने देखा कि उस आदमी ने एकदम सफेद रंग का कुर्ता पायजामा पहन रखा था। और वो आलथी पालथी मार कर बैठा हुआ था जहां वो बेठा हुआ था वहां पर कीचड था।
मैने अपने दोस्तों को उसे दिखाया, उन्होने भी उसे देखा। उस आदमी की पीठ हमारी तरफ थी, और वो एकदम योगमुद्रा में बेठा हूआ था। हमने फैसला किया कि निवृत होने के बाद उस आदमी के पास चलेंगे।
वह आदमी हम से करीब दो ढाई सौ फीट की दूरी पर बैठा था।
हम अपने कार्य से फारिंम हुए और पोखर के पानी से काम चलाया।
तभी मैने एक और चीज पर गौर किया, मैने संजीव से कहा "यार! तुझे नहीं लगता कि इस आदमी के हाथ आवश्यकता से अधिक लम्बे हैं।"3
तो उसने मजाक में हंसते हुए जवाब दिया "हां हमें पास जाकर देखना चाहिये कि कहीं उसके पैर भी तो उल्टे नहीं है"
इस बात पर हम सभी ने जोर से ठहाका लगाया।
फिर हम उस व्यक्ति कि लम्बाई का अनुमान लगाने लगे तो हमें लगा कि इस बात पर हमारा ध्यान पहले क्यो नहीं गया।
वो आदमी हमसे दूर जरूर था लेकिन यकीनन बैठे हुए में उसकी लम्बाई 6 फीट लग रही थी, हमने सोचा कि ये खडा होगा तो कितना लम्बा होगा।
हम लोग चिल्ला चिल्ला कर बातें कर रहै थे लेकिन कमाल की बात थी कि वो आदमी टस से मस नहीं हो रहा था। हम उसके काफी करीब जा चुके थे और उस आदमी ने एक बार भी पलट कर नहीं देखा था।
फिर न जाने हमें एकदम से क्या हुआ हम वापस जाने की बातें करने लगे एकदम उस आदमी के पीछे खडे होकर, और हमने वापस आने का रास्ता पकड लिया क्योंकि अंधेरा सा होने लगा था।
और हम धीरे धिरे वहां आगये जहां बारात ठहराई गई थी।
जब ये बात हमने वहां के रहने वाले लोगों को बताई तो किसी ने विश्वास ही नहीं किया, सब कह रहे थे कि उस तरफ वैसे तो कोई जाता नहीं और अगर चला भी गया तो कोई आलथी पालथी मारकर नहीं बेठेगा। और हां उसकी लम्बाई के और हाथों की लम्बाई के बारें में भी किसी ने विश्वास नहीं किया।
और जिसने विश्वास किया उसने यही कहा कि आपकी किस्मत अच्छी थी जो आप वहां से बच कर आगये।

5 comments:

  1. शुरु में तो लेख पढ़ा और हंसते ही रहे, परंतु अंत तक पंहुचते पंहुचते, आशचर्य की स्थिति में पहुंच गए!बहरहाल, पोस्ट रोचक है......लिखते रहिये शुभकामनाएं! हम कहेंगे इतना ही :-जानें कौन था वो जाने क्या बात थी,पर जब भी होगी अंजाने राज़ों की बात,हामी भर सकेंगे हम भी !!!-रेणु आहूजा.

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  2. शुक्रिया रेणु जी

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  3. रजनीश मंगलाMonday, May 08, 2006 4:26:00 AM

    'जैसे मैं एलिस इन वंडरलेंड में हूँ।' युगल जी ये क्या हुआ? लेकिन उस आदमी के बारे में मेरी उत्सुकता भी बढ़ रही है।

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  4. रजनीश जी'जैसे मैं एलिस इन वंडरलेंड में हूँ।' युगल जी ये क्या हुआ? इससे मेरा मतलब है कि मुझे ऐसा लग रहा था कि मैं एलिस इन वडंरलेंड कहानी कि एलिस की भांति वडंरलेंड में घूम रहा हो।और फिर यार लिखने की शुरुआत है, थोडी बहुत गलती हो जाती है।

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  5. वाकई एलिस के वंडरलेंड में ही पहुंच गए थे। पर जल्दी ही वापस लौट आए।

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